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पाकिस्तान को भारत से बातचीत की तड़प, शहबाज शरीफ ने अमेरिका से लगाई गुहार

पाकिस्तान :- हाल ही में एक चौंकाने वाली कूटनीतिक पहल में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत को फिर से शुरू कराने की अपील की है। उन्होंने अमेरिका से खुले शब्दों में कहा कि वह दक्षिण एशिया में शांति की बहाली के लिए मदद करे और भारत के साथ लंबे समय से ठप पड़ी वार्ता प्रक्रिया को आगे बढ़ाए।

शहबाज शरीफ का यह बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति चरमरा चुकी है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसकी साख लगातार गिर रही है। वहीं, भारत वैश्विक मंचों पर अपनी मजबूत कूटनीति और आर्थिक नीति के चलते मजबूत स्थिति में है। पाकिस्तान इस समय न केवल आंतरिक अस्थिरता से जूझ रहा है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अलग-थलग पड़ गया है।

शरीफ ने एक सार्वजनिक मंच से कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव को खत्म करने की दिशा में अमेरिका को मध्यस्थता करनी चाहिए। उन्होंने ट्रंप को संबोधित करते हुए कहा कि वे पहले भी कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की इच्छा जता चुके हैं, ऐसे में अब समय आ गया है कि वह वास्तव में कोई कदम उठाएं।

विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान की यह ‘गिड़गिड़ाहट’ उसकी असहायता और कूटनीतिक कमजोरी को दर्शाती है। पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान ने बार-बार भारत से बातचीत की इच्छा जताई है, लेकिन भारत ने स्पष्ट किया है कि जब तक आतंकवाद पर कठोर कार्रवाई नहीं होती, तब तक कोई वार्ता संभव नहीं है। भारत की नीति बिल्कुल साफ है—“आतंक और वार्ता एक साथ नहीं चल सकते।”

शहबाज शरीफ की इस अपील पर भारत की ओर से कोई औपचारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन कूटनीतिक गलियारों में यह माना जा रहा है कि भारत फिलहाल पाकिस्तान की इस चाल में नहीं फंसेगा। भारत की विदेश नीति अब पहले से कहीं अधिक स्पष्ट, मजबूत और आत्मनिर्भर हो चुकी है।

उधर, अमेरिका के लिए भी यह स्थिति असहज है। चीन और रूस जैसे देशों के बीच संतुलन साधते हुए अमेरिका को भारत जैसे रणनीतिक साझेदार को नाराज करने का कोई इरादा नहीं है। ऐसे में पाकिस्तान की यह अपील शायद सिर्फ ‘सुनवाई’ तक ही सीमित रह जाए।

अंततः यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान अब यह महसूस करने लगा है कि भारत से बातचीत के बिना दक्षिण एशिया में उसकी स्थिति और खराब हो सकती है। लेकिन भारत यह भी भलीभांति समझता है कि कूटनीति मजबूती से की जाती है, न कि भावनात्मक अपीलों से।

इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थिरता और सम्मान उन्हीं देशों को मिलता है जो आंतरिक रूप से मजबूत, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और आतंकवाद से दूर हों। पाकिस्तान को यदि वास्तव में भारत से बातचीत की जरूरत है, तो उसे पहले खुद को बदलना होगा।

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