कौशांबी:- 103 साल के बुजुर्ग लखन की 48 साल बाद जेल से रिहाई हुई। लखन पुत्र मंगली को वर्ष 1977 में गांव के ही एक व्यक्ति की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा मिली थी। तब से वह जेल में बंद थे। अब उनकी रिहाई जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की पहल पर संभव हो सकी है।
लखन को रिहा कराने के लिए उनका परिवार दशकों से प्रयासरत था, लेकिन सफलता नहीं मिल रही थी। उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचने के बाद परिजनों ने मानवीय आधार पर रिहाई की गुहार लगाई। जिसके बाद जेल अधीक्षक अजितेश कुमार ने मामला विधिक सेवा प्राधिकरण की सचिव पूर्णिमा प्रांजल को सौंपा। सचिव ने गंभीरता से लेते हुए लीगल एडवाइजर अंकित मौर्य को नियुक्त किया।
हाई कोर्ट में अपील करवाई गई। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और कानून मंत्री को भी पूरे मामले की जानकारी दी गई। आखिरकार हाईकोर्ट ने लखन की रिहाई का आदेश दिया। दोस्त अब दुनिया में नहीं पहे…
गांव में निकले तो पहचान के चेहरे नदारद जेल अधीक्षक और लीगल एडवाइजर की मौजूदगी में मंगलवार को लखन को रिहा किया गया। जेल प्रशासन ने उन्हें सुरक्षित रूप से घर तक पहुंचाया। जैसे ही लखन घर पहुंचे, पूरा परिवार भावुक हो गया। लखन की आंखों में आंसू थे, और वर्षों से इंतजार कर रहे परिजन भी अपने जज्बात पर काबू नहीं रख सके।
हालांकि, लखन की रिहाई की खुशी ज्यादा देर टिक नहीं सकी। जब वह गांव में निकले तो पहचान के चेहरे नदारद थे। इतना ही नहीं लखन ने जिन दोस्तों और साथियों के साथ जिंदगी बिताई थी, वे अब इस दुनिया में नहीं रहे। गांव की गलियां, मकान और लोग अब बदले हुए थे।
परिवार के भी कई सदस्य उन्हें नहीं जानते थे। इसका कारण था कि जब लखन जेल गए थे, तब वे पैदा भी नहीं हुए थे। लखन के चेहरे पर गहरी मायूसी लखन के चेहरे पर गहरी मायूसी छाई दिखी। यह रिहाई आजादी से अधिक एक नई दुनिया में लौटने सी थी, जहां सब कुछ बदला हुआ था। गांव में अब बस लखन की पुरानी यादें ही हैं। अब वह आजीवन कारावास की अवधि पर भी सवाल उठाते दिख रहे हैं।