नई दिल्ली। भारत की सैन्य शक्ति और रणनीतिक समन्वय की परीक्षा उस समय सामने आई जब “ऑपरेशन सिंदूर” को अंजाम दिया गया। यह ऑपरेशन केवल एक सैन्य मिशन नहीं था, बल्कि तीनों सेनाओं—थलसेना, नौसेना और वायुसेना—के बीच तालमेल, तत्परता और तकनीकी समन्वय की असली कसौटी साबित हुआ। इसकी नींव डाली गई थी हल्दी घाटी त्रि-सेवा अभ्यास के दौरान, जिसकी योजना CDS (चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ) की निगरानी में तैयार की गई थी।
हल्दी घाटी अभ्यास: सिर्फ अभ्यास नहीं, युद्ध जैसी तैयारी
“हल्दी घाटी” नामक यह अभ्यास एक फुल-स्केल सिम्युलेटेड युद्धाभ्यास था, जिसमें देश के सामरिक दृष्टिकोण से अहम माने जाने वाले पश्चिमी और दक्षिण-पश्चिमी समुद्री क्षेत्र को फोकस किया गया। इसमें सेनाओं ने न सिर्फ हथियारों की ताकत दिखाई, बल्कि रियल-टाइम इंटेलिजेंस शेयरिंग, लॉजिस्टिक्स सपोर्ट, और साइबर वारफेयर की भी परीक्षण किया।
नौसेना की भूमिका: अरब सागर में ट्रोपेक्स अभ्यास से बनी बुनियाद
भारतीय नौसेना ने “ट्रोपेक्स” नामक अभ्यास के तहत अरब सागर में अपने युद्धपोत, पनडुब्बी और एयर स्क्वाड्रन को हाई अलर्ट पर रखा। इस अभ्यास के जरिए यह सुनिश्चित किया गया कि यदि किसी आपात स्थिति में समुद्री सीमा की रक्षा करनी हो या त्वरित जवाब देना हो, तो नौसेना पूरी तरह तैयार है। इसी तैयारी का नतीजा था कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत ने बिना किसी देरी के अपने सभी फ्रंट्स को एक्टिवेट किया।
CDS की रणनीति: एक कमांड, एक सोच
CDS की सोच स्पष्ट थी—’थिएटर कमांड’ मॉडल के जरिए सभी तीनों सेनाओं को एक साझा उद्देश्य के तहत काम करने के लिए तैयार करना। हल्दी घाटी अभ्यास उसी दिशा में एक अहम कदम था, जहां हर यूनिट को यह सिखाया गया कि मिशन भले अलग हो, लेकिन लक्ष्य एक है—राष्ट्र की सुरक्षा।
ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के पीछे यही समन्वय
जब ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत हुई, तो हल्दी घाटी और ट्रोपेक्स में की गई तैयारी सीधे उपयोग में आई। सेना को जमीनी मोर्चे पर सटीक सूचना मिली, नौसेना ने समुद्र से रास्ता साफ रखा, और वायुसेना ने एयर कवर देकर मिशन को सफलता दिलाई।
यह ऑपरेशन न केवल भारत की रक्षा क्षमताओं की गवाही देता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि अब भारत सिर्फ प्रतिक्रिया नहीं करता, बल्कि रणनीति से पहले से तैयार रहता है।
निष्कर्ष: अभ्यास से ही मिलती है विजय की राह
“हल्दी घाटी” जैसे अभ्यास सिर्फ दिखावे के लिए नहीं होते, बल्कि ये युद्ध से पहले की मानसिक, रणनीतिक और तकनीकी तैयारी का हिस्सा होते हैं। ऑपरेशन सिंदूर की सफलता इस बात का प्रमाण है कि जब सेना, समुद्र और आकाश एक साथ सोचते हैं, तब जीत सुनिश्चित होती है।
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