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नब्बे फीसदी कैंसर से हो सकता है बचाव, यूपी में हर साल मिल रहे दो लाख से अधिक रोगी

नई दिल्ली :- कमला नेहरू मेमोरियल अस्पताल के क्षेत्रीय कैंसर केंद्र की ओर से शनिवार से दो दिवसीय 35वें यूपीआरोकॉन-24 का शुभारंभ किया गया। देश के कोने-कोने से पहुंचे कैंसर विशेषज्ञों ने अपने अनुभव साझा किए। पहले दिन सुबह और 10 नवंबर दोपहर को कमला नेहरू अस्पताल में मुंह, त्वचा और स्तन कैंसर की शुरुआती ब्रैकीथेरेपी पर प्रशिक्षण कार्यशाला से हुई। यह कैंसर के उपचार की एक पद्धति है, जो शल्य चिकित्सा को नुकसान पहुंचाने से बचाते हुए उत्कृष्ट कॉस्मेटिक और कार्यात्मक परिणाम प्रदान करती है। इलाहाबाद मेडिकल एसोसिएशन के कन्वेंशन सेंटर में आयोजित कैंसर के उपचार की विधियों पर नवीनतम जानकारियां दी गईं।

हेमवती नंदन बहुगुणा मेडिकल एजुकेशन यूनिवर्सिटी देहरादू के कुलपति डॉ. मदनलाल ब्रह्मभट्ट ने कहा कि कैंसर पूरे विश्व में तेजी से पांव पसार रहा है। यह एक महामारी का रूप लेता जा रहा है। सिर्फ यूपी में हर वर्ष दो लाख से अधिक नए कैंसर रोगी मिल रहे हैं। इस संख्या के हिसाब से उपचार के संस्थान और संस्थान बेहद सीमित हैं। अधिकांश कैंसर का पता एडवांस स्टेज पर पता चलता है तब तक देर हो चुकी होती है। कहा कि नब्बे फीसदी कैंसर को उपचार से ठीक किया जा सकता है, बशर्ते वह प्रारंभिक स्टेज पर पकड़ में आ सके। इसके लिए समय समय पर जांच और जागरूकता बेहद जरूरी है।

कुल 200 प्रकार के होते हैं कैंसर

डॉ. ब्रह्मभट्ट ने कहा कि कुल 200 प्रकार के कैंसर होते हैं। दो तिहाई कैंसर तो सिर्फ तंबाकू से होते हैं। तंबाकू से 14 प्रकार के कैंसर होते हैं। यूपी में जितने रोगी हर वर्ष नए मिल रहे हैं उस हिसाब से यहां पर उपचार की सुविधाएं नहीं हैं। स्थिति यह है कि हर कैंसर संस्थान में दो से तीन महीने की वेटिंग चल रही है। जरूरत है कि सभी मेडिकल कॉलेजों, जिला अस्पतालों और बड़े अस्पतालों में रेडियोथिरेपी कैंसर के उपचार की सुविधा मिलनी चाहिए। ताकि प्रारंभिक स्तर पर ही इस बीमारी को ठीक किया जा सके। मुंह का कैंसर, छाती और बच्चेदानी के मुंह का कैंसर आसानी से पकड़ा जा सकता है।

बढ़ती जा रही है कैंसर रोगियों की संख्या

टाटा कैंसर अस्पताल वाराणसी के निदेशक डॉ. सत्यजीत प्रधान ने कहा कि भारत में मरीज ज्यादा और जांच की सुविधाएं और संसाधन काम हैं। पश्चिमी देशों में मरीज कम हैं लेकिन उनके यहां संसाधान ज्यादा विकसित हैं। जिससे प्रारंभिक स्टेज पर ही रोगियों को सर्च कर लिया जाता है और समय से उपचार शुरू हो जाता है। भारत में उपकरणों की संख्या बढ़नी चाहिए्।

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