नई दिल्ली :- चीन एक बार फिर ताइवान को धमकाने की मुद्रा में है। उसकी ताजा बौखलाहट ताइवानी उपराष्ट्रपति विलियम लाई को लेकर बढ़ी है। अपनी पराग्वे यात्रा के दौरान लाई ने अमेरिका में भी कुछ समय के लिए पड़ाव डाला और इससे चीन चिढ़ गया। लाई ताइवान में अगले राष्ट्रपति के प्रमुख दावेदार के रूप में उभरे हैं।
चीनी सेना ने लाई के अमेरिकी दौरे को ‘ताइवान की स्वतंत्रता के समर्थकों’ द्वारा विदेशी सहायता मांगना करार देते हुए इस पर कड़ी कार्रवाई की चेतावनी दी है। चीनी सेना ने युद्ध की तैयारियों से जुड़ी धमकियां भी दी हैं। ताइवान की सीमा के इर्दगिर्द चीन की ओर से सैन्य गतिविधियां चलाना बहुत आम है। ‘वन चाइना पालिसी’ के अंतर्गत चीन ताइवान को अपना अभिन्न अंग मानता है, जबकि वास्तविकता यही है कि 1949 से ताइवान स्वतंत्र रूप से शासित रहा है।
इसके बावजूद चीन अपनी आदत से बाज नहीं आता और ताइवान के आसपास सामरिक चढ़ाई की मुद्रा में रहता है और उसके समर्थन में सुर मिलाने वाले देशों को भी धमकाता है।
चीन और ताइवान के रिश्तों की तस्वीर बड़ी जटिल और बहुआयामी प्रकृति की है, जिसमें राजनीतिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक पहलू भी जुड़े हैं। छिटपुट सैन्य गतिविधियां तो इस टकराव में एक उदाहरण मात्र है, लेकिन दोनों के बीच यह भू-राजनीतिक टकराव बहुत लंबे समय से चला आ रहा है। ताइवान पर नियंत्रण की चीन की चाह के पीछे कई कारण हैं। सबसे बड़ा पहलू तो रणनीतिक महत्व का है।
चीन का मानना है कि ताइवान पर कब्जे के साथ वह अमेरिका की ‘द्वीप शृंखला रणनीति’ को निष्प्रभावी कर देगा, क्योंकि ताइवान चीन और पश्चिमी प्रशांत महासागर के बीच एक दीवार का काम करता है। यदि चीन ताइवान पर काबिज हो जाता है तो एशिया के प्रमुख सामुद्रिक मार्गों पर उसे बढ़त हासिल हो जाएगी, जिसका वह लाभ उठाएगा। एक पहलू आर्थिक हितों का भी है। ताइवान विश्व की सेमीकंडक्टर महाशक्ति है। ऐसे में उस पर नियंत्रण के साथ चीन का विश्व के कई प्रमुख उद्योगों पर वर्चस्व और अधिक बढ़ जाएगा।
ताइवान की प्रति व्यक्ति जीडीपी चीन की तुलना में तीन गुना अधिक है, जो उसकी समृद्धि को दर्शाती है। जाहिर है कि चीनी कंपनियों के लिए वहां अपार संभावनाएं होंगी। ताइवान को लेकर चीन की जिद का एक कारण ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक भी है। एक समय चीनी गणतंत्र का हिस्सा रहा ताइवान 1949 में चीनी गृहयुद्ध के बाद स्वतंत्र हो गया था। चीन आज तक उसके स्वतंत्र अस्तित्व को पचा नहीं पाया है। यही कारण है कि उसे चीन का हिस्सा बनाना चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और राष्ट्रपति शी चिनफिंग की रणनीति का एक प्रमुख हिस्सा है। स्वाभाविक है कि चीन में आंतरिक राजनीतिक दृष्टिकोण से भी इसके गहरे निहितार्थ हैं।
ताइवान पर चीन रह-रहकर जिस प्रकार आंखें तरेरता रहता है उससे एक प्रश्न यही खड़ा होता है कि चीनी हमले की स्थिति में क्या ताइवान अपनी सुरक्षा करने में सक्षम है? इसमें कोई संदेह नहीं कि ताइवान ने अपनी सामरिक तैयारियां की हैं, लेकिन बाहरी मदद के बिना चीन का मुकाबला करने की उसकी क्षमता बहस का विषय है। चीनी मिसाइल, हवाई हमले और साइबर आक्रमण जैसे तात्कालिक खतरों से निपटने के लिए ताइवानी सेना ने मोर्चा तैयार किया है।