गोरखपुर (उतर प्रदेश):- गोरखपुर में 2016 जनवरी से 2021 दिसंबर तक के वाहन चालान माफ करने का शासनादेश जारी होने के बावजूद, आरटीओ अधिकारी इन चालानों को ऑनलाइन डिलीट करने में कोताही बरत रहे हैं। आरटीओ एक्सपर्ट एडवोकेट हरिनंदन श्रीवास्तव का कहना है कि जब शासन ने इन चालानों को माफ कर दिया है तो फिर आरटीओ अधिकारियों को इन्हें ऑनलाइन क्यों नहीं डिलीट करना चाहिए? इस अवधि के चालानों को ऑनलाइन डिलीट करने के लिए किसी कोर्ट की अनुमति की आवश्यकता नहीं है क्योंकि शासनादेश ही पर्याप्त है। कोर्ट में तैनात पैरोकार चालान वाले वाहन नंबर की लिस्ट आरटीओ को भेज देते हैं जिसके आधार पर चालान को कैंसिल किया जाता है। हालांकि आरटीओ अधिकारी अभी भी इसे लेकर कोर्ट से परमिशन लेने की बात कर रहे हैं जिससे वाहन मालिकों को परेशानी हो रही है।
गाड़ी का रजिस्ट्रेशन कराने या वाहन बेचने की प्रक्रिया में भी यह समस्या सामने आ रही है। वाहन मालिकों को ऑनलाइन चालान डिलीट कराने के लिए कोर्ट जाने की बजाय दलालों के पास जाना पड़ रहा है। दलाल चालान डिलीट कराने के नाम पर वाहन मालिकों से मनचाहा पैसा वसूल करते हैं और एडवोकेट के जरिए कुछ दिनों में चालान ऑनलाइन डिलीट करा देते हैं। इस प्रक्रिया में एक से डेढ़ हजार रुपए की वसूली होती है जबकि यह काम आरटीओ अधिकारियों का होना चाहिए।
2016 जनवरी से 2021 दिसंबर तक के चालानों की संख्या लाखों में थी। इनमें से लाखों चालान अब तक ऑनलाइन डिलीट हो चुके हैं, लेकिन अभी भी हजारों चालान निस्तारित नहीं हो पाए हैं। इन चालानों की कुल राशि लगभग 1.75 करोड़ रुपए है।
एडवोकेट नित्यानंद मिश्रा का कहना है कि शासन द्वारा कैंसिल किए गए चालानों को ऑनलाइन डिलीट कराने में कोई भी खर्च नहीं आता है। आरटीओ अधिकारी इसे बिना किसी परेशानी के डिलीट कर सकते हैं लेकिन वे वाहन मालिकों को परेशान कर कोर्ट भेज देते हैं। यदि कोई व्यक्ति इस समस्या का सामना कर रहा है तो वह कोर्ट में तैनात पैरोकार से मिलकर एक पत्र तैयार करवा सकता है जिसके आधार पर आरटीओ ऑनलाइन चालान कैंसिल कर देंगे।
आरटीओ प्रवर्तन अधिकारी नरेंद्र यादव के अनुसार शासन के आदेश के बाद चालान को कैंसिल किया गया था लेकिन ऑनलाइन डिलीट करने के लिए कोर्ट की अनुमति जरूरी है। अधिकांश चालान कैंसिल किए जा चुके हैं और पेंडिंग चालानों का निस्तारण भी कोर्ट से लिया जाता है। लिस्ट मिलने के बाद आरटीओ ऑफिस से इन चालानों को ऑनलाइन डिलीट किया जाता है। यह स्थिति गोरखपुर के वाहन मालिकों के लिए परेशानी का सबब बन गई है जो इसे लेकर आरटीओ अधिकारियों के खिलाफ सवाल उठा रहे हैं।