संयुक्त राष्ट्र:-संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP29) में जलवायु वित्त के नए सामूहिक मात्रात्मक लक्ष्य (NCQG) पर सहमति बनाने में विफलता ने विकासशील देशों की चिंताओं को बढ़ा दिया है। विकासशील देशों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उन्हें विश्व के विकसित देशों से अधिक वित्तीय सहायता की आवश्यकता है l
विकासशील देशों ने जलवायु वित्त के लिए सालाना 1.3 ट्रिलियन डॉलर के लक्ष्य की मांग की है जो उन्हें जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में मदद करेगा। हालांकि विकसित देश इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए तैयार नहीं हैं।
जलवायु वित्त के नए लक्ष्य पर सहमति बनाने में विफलता के कारणों में से एक यह है कि विकसित देश जलवायु वित्त के स्रोतों के बारे में अलग-अलग राय रखते हैं। विकासशील देश चाहते हैं कि जलवायु वित्त का अधिकांश हिस्सा विकसित देशों की सरकारों से आए जबकि विकसित देश चाहते हैं कि जलवायु वित्त का एक बड़ा हिस्सा निजी क्षेत्र से आए।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के रामेश्वर प्रसाद चंद का कहना है कि जलवायु वित्त के नए लक्ष्य पर सहमति बनाना एक बड़ी चुनौती है। उन्होंने कहा कि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अधिक वित्तीय सहायता की आवश्यकता है लेकिन विकसित देश इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए तैयार नहीं हैं l
जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक सहयोग की आवश्यकता पर जोर देते हुए चंद ने कहा कि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है जिसका समाधान वैश्विक सहयोग से ही संभव है। उन्होंने कहा कि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अधिक वित्तीय सहायता की आवश्यकता है और विकसित देशों को इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए तैयार रहना चाहिए l
इस बीच जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक सहयोग की आवश्यकता पर जोर देते हुए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है जिसका समाधान वैश्विक सहयोग से ही संभव है। उन्होंने कहा कि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अधिक वित्तीय सहायता की आवश्यकता है और विकसित देशों को इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए तैयार रहना चाहिए l