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इलाहाबाद उच्च न्यायालय का बड़ा फैसला: बदले की भावना से दर्ज एफआईआर(FIR) खारिज

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महिला की एफआईआर को रद्द कर दिया है, जिसमें उसने अपने पति और ससुराल वालों पर दहेज के लिए उत्पीड़न का आरोप लगाया था। अदालत ने कहा कि यह मामला बदले की भावना से किया गया था और आरोपों में कोई सच्चाई नहीं थी।

महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और अन्य अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज कराई थी। हालांकि अदालत ने पाया कि आरोपों में कोई सच्चाई नहीं थी और यह मामला बदले की भावना से किया गया था।

अदालत ने कहा कि महिला के पति ने भी अपनी पत्नी के खिलाफ एक मामला दर्ज कराया था जिसमें उसने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी ने उसे और उसके परिवार को धमकी दी थी। अदालत ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच कोई भी समझौता नहीं हो सका और मामला अदालत में गया।

अदालत ने यह भी कहा कि महिला के आरोपों में कोई सच्चाई नहीं थी और यह मामला बदले की भावना से किया गया था। अदालत ने महिला की एफआईआर को रद्द कर दिया और कहा कि यह मामला अदालत के समय की बर्बादी थी।

इस मामले में अदालत का फैसला एक महत्वपूर्ण मोड़ है क्योंकि यह दिखाता है कि अदालतें बदले की भावना से किए गए मामलों को रद्द कर सकती हैं। यह फैसला उन लोगों के लिए एक सबक है जो बदले की भावना से मामले दर्ज कराते हैं।

*मामले की पृष्ठभूमि:*

महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न और अन्य अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज कराई थी। हालांकि अदालत ने पाया कि आरोपों में कोई सच्चाई नहीं थी और यह मामला बदले की भावना से किया गया था।

*अदालत का फैसला:*

अदालत ने महिला की एफआईआर को रद्द कर दिया और कहा कि यह मामला अदालत के समय की बर्बादी थी। अदालत ने यह भी कहा कि महिला के आरोपों में कोई सच्चाई नहीं थी और यह मामला बदले की भावना से किया गया था।

*निष्कर्ष:*

इस मामले में अदालत का फैसला एक महत्वपूर्ण मोड़ है क्योंकि यह दिखाता है कि अदालतें बदले की भावना से किए गए मामलों को रद्द कर सकती हैं। यह फैसला उन लोगों के लिए एक सबक है जो बदले की भावना से मामले दर्ज कराते हैं।

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