मिर्जापुर(उत्तर प्रदेश):- इस गुरु पूर्णिमा महोत्सव पर परमहंस आश्रम में स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज द्वारा रचित यथार्थ गीता की पांच प्रतियां से भी अधिक मानव धर्मशास्त्र रूपी पुस्तक सभी भक्तगणों ने स्वामी जी के आदेशानुसार न्यूनतम दर पर प्राप्त की।
योगेश्वर महाप्रभु पूज्य ने कहा कि सारे धर्मों की चिंता छोड़ एक परमात्मा की शरण में भजन करने वाला संपूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। सदगुरुदेव भगवान इस गुरु पूर्णिमा पर भक्तों को संदेश रूपी गुरु मंत्र की गंगा बहाई। स्वामी जी के शिष्य राम रक्षानंद जी महाराज ने कहा कि गीता के अनुसार एक परमात्मा की शरण होकर भजन ही एकमात्र धर्म है। इसी बात को सभी महापुरुष कहते हैं वह भक्त आर्त जिज्ञासु, ज्ञानी तथा अर्थार्थी हैं। उन्होंने कहा कि मांगना है तो भगवान से मांगो वह जरूर देंगे, मांगने वाले स्वर्ग लोक तक की कामना करते हैं। जिसे भगवान देते भी हैं, लेकिन जब पुण्य -क्षीण हो जाता है, तो पुनः भक्त अपनी पुरानी स्थिति अथवा मृत्यु लोक में आ जाता है।
राम रक्षानंद जी महाराज ने बताया कि गीतोक्त विधि से शुरू किया गया भजन नष्ट नहीं होता है। भगवान कृष्ण कहते हैं कि मेरा भक्त कभी नष्ट नहीं होता है। उन्होंने कहा कि तीर्थ व्रत व्यर्थ नहीं है। सारे तीर्थों का परिणाम हरि की भक्ति है, देवी और देवता आपके पूर्वज हैं, वे प्राप्ति वाले महापुरुष हैं, स्थिति वाले महापुरुष सहज शरीर से सूक्ष्म रूप में सदैव विद्यमान रहते हैं, उन्हें समर्पित भाव से पुकारने पर वह खड़े होकर अपने भक्त का कल्याण करते हैं।
इस ओर अवसर पर आगे बताते हुए कहा कि परमात्मा का भजन दो- ढाई अक्षर राम, ओम का जाप करें, भजन की जागृति किसी तत्व दर्शी महापुरुष की शरण में सेवा कर सद्गुरु के आदेशों -निर्देशों का पालन करने से साधना जागृति हो जाती है, सद्गुरु ही ईश्वर के समीप ला सकते हैं, जिस दिन यथार्थ- गीता घर-घर पहुंच जाएगी, समाज में फैली कुरीतियां, भ्रांतियां, आतंकवाद स्वत :ही समाप्त हो जाएगा।
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