नई दिल्ली :- संसद या विधानसभाओं में भाषण या वोट देने के लिए रिश्वत लेने पर आपराधिक अभियोजन से सांसदों या विधायकों को छूट हासिल होने के दावे की पड़ताल में सहायता के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को वरिष्ठ अधिवक्ता पी.एस. पटवालिया को न्यायमित्र नियुक्त किया।
जस्टिस एस.ए. नजीर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अधिवक्ता गौरव अग्रवाल को इस विषय में पटवालिया की सहायता करने को भी कहा।
पीठ दिसंबर में करेगी सुनवाई
पीठ में जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस ए.एस. बोपन्ना, जस्टिस वी. रामासुब्रमण्यन और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना भी शामिल हैं। पीठ छह दिसंबर, 2022 को इस विषय पर सुनवाई करेगी। वर्ष 2019 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह कहते हुए इस विषय को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेज दिया था कि इसके व्यापक निहितार्थ हैं और यह अत्यधिक लोक महत्व का विषय है। उस पीठ में जस्टिस एस.ए. नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना भी शामिल थे। उस समय पीठ ने कहा था कि वह झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) रिश्वत मामले में 24 वर्ष पुराने फैसले पर पुनर्विचार करेगा। न्यायालय ने झारखंड में झामुमो विधायक सीता सोरेन द्वारा दायर अपील पर उक्त टिप्पणी की थी।
आपराधिक मामला रद करने से इनकार
शीर्ष अदालत ने 1998 में पांच न्यायाधीशों की अपनी संविधान पीठ के जरिये पी.वी. नरसिंह राव बनाम सीबीआइ मामले में फैसला सुनाया था कि सांसदों को संसद के अंदर किसी भाषण या मतदान के लिए आपराधिक अभियोजन से संविधान के तहत छूट प्राप्त है। झामुमो विधायक सीता सोरेन ने झारखंड हाई कोर्ट के 17 फरवरी, 2014 के आदेश के विरुद्ध अपील की थी, जिसने 2012 में राज्यसभा चुनावों में एक खास उम्मीदवार को वोट देने के लिए कथित तौर पर रिश्वत लेने के लिए उनके विरुद्ध दर्ज आपराधिक मामला रद करने से इनकार कर दिया था।