Dastak Hindustan

जानिए भारत से जिन्ना के जाने की पूरी कहानी, स्वतंत्रता दिवस का दिन बहुत ही खास

नई दिल्ली :- कैलेंडर पर बदलती हर तारीख नई उम्मीदों, नई खुशियों, नई बेचैनियों और नई दुश्वारियों को साथ लेकर पैदा हो रही थी। आजादी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हिन्दुस्तान के बाशिंदों के लिए एक-एक पल बहुत भारी गुजर रहा था। 15 अगस्त आने में बमुश्किल 10 दिन बचे थे। लाहौर की सड़कों पर बेबसी का सन्नाटा पसरा था, क्योंकि हिंदू-सिख व्यापारियों ने उन्मादियों के अत्याचार के खिलाफ बंद का ऐलान किया था। लाहौर में करीब 3 लाख हिंदू और सिख रहते थे, लेकिन पिछले 3 महीने में करीब एक लाख लोग लाहौर छोड़कर भारत के हिस्से वाले पूर्वी पंजाब में जा चुके थे। पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और बंगाल में भीषण दंगे दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे थे।

इधर, दिल्ली में वो घड़ी भी आ गई, जब सेनाओं का बंटवारा शुरू हो गया। लाल किले में सेना के अफसर जुटे थे। वायसराय माउंटबेटेन और सरदार बलदेव सिंह भी पहुंचे थे। उन अफसरों को विदाई दी जा रही थी, जो पाकिस्तान के हिस्से में आए थे। भारतीय सेना की ओर से जनरल केएम करिअप्पा और पाकिस्तानी सेना की ओर से ब्रिगेडियर एएम राजा ने भाईचारा बनाए रखने की बात कही और फिर सबने हाथ में हाथ लेकर विदाई का गीत गाया। हर आंख नम थी। वहीं, आजाद हिन्दुस्तान के पहले प्रधानमंत्री होने जा रहे नेहरू का संभावित मंत्रिमंडल एक्शन मोड में आ चुका था।

 

तय किया जा रहा था कि कौन-किस मंत्रालय का सर्वोच्च अधिकारी होगा और कौन-किस देश का राजदूत बनेगा। जैसे-जैसे नाम तय हो रहे थे, वैसे-वैसे उन सबको पत्र भी भेजे जा रहे थे। मॉस्को के लिए नेहरू की बहन विजय लक्ष्मी पंडित, तो पाकिस्तान के लिए इलाहाबाद के श्रीप्रकाश का नाम तय हुआ। और इन्हें रवाना होने के लिए भी कह दिया गया। इस बीच, पंडित नेहरू ने माउंटबेटेन को भरोसा दिलाया कि जो अंग्रेज अफसर आजाद हिन्दुस्तान में काम करना चाहेंगे, उन्हें सेवा विस्तार दिया जाएगा।

 

माउंटबेटेन इस बात से भी खुश था कि उसे फिलहाल वायसराय हाउस खाली करने को नहीं कहा जा रहा। उधर, शरणार्थी शिविरों का बुरा हाल था। 5 अगस्त को ऐसे ही एक शिविर में महात्मा गांधी कश्मीर से लाहौर जाते समय रुके, तो उनकी हालत देख द्रवित हो गए। इस बीच दिल्ली में सरदार पटेल रियासतों और रजवाड़ों की फाइलों में व्यस्त थे। वहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक एमएस गोलवलकर अपने लोगों को समझाने के लिए कराची पहुंचे थे। जिन्ना भी दिल्ली का अपना घर उद्योगपति रामकृष्ण डालमिया को बेचकर कराची पहुंचने की तैयारी में थे।

 

7 अगस्त 1947, गुलामी की जंजीरें चटकने लगी थीं और आजादी के कदमों की आहट अब साफ-साफ सुनाई देने लगी थी। हर हिन्दुस्तानी की धड़कनें एक-सी रफ्तार से धड़क रही थीं। 7 अगस्त को जब जिन्ना हिन्दुस्तान की सरजमीं को अलविदा कहकर वायसराय के विशेष डकोटा विमान से कराची के लिए रवाना हो रहे थे, तो कोई उन्हें एयरपोर्ट तक छोड़ने भी नहीं गया। दोपहर करीब 1 बजे जब यह विमान कराची के मौरिपुर हवाई अड्‌डे पर उतरा, तो वहां भी जिन्ना का स्वागत करने के लिए गिने-चुने कार्यकर्ता ही थे।

 

बेदम से उनके नारे और जिन्ना के चेहरे की उदासी साफ बता रही थी, कि वे क्या खोकर आ रहे थे। 9 अगस्त को जोगेन्द्रनाथ मंडल की अध्यक्षता में वहां की संविधान सभा ने जिन्ना को नया अध्यक्ष चुन लिया। अपने पहले भाषण में जिन्ना ने कहा कि हिन्दुस्तान के बंटवारे के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। इधर, 9 अगस्त की ही शाम दिल्ली जश्न में नहा रही थी। रामलीला ग्राउंड में हुई विशाल जनसभा के बाद आतिशबाजी की रोशनी से आसमान चमक उठा था।

 

वहीं, लंदन में भी आजादी का जश्न शुरू हो चुका था। हिन्दुस्तानी रेस्त्रां और होटल तिरंगी आभा बिखेर रहे थे। 11 अगस्त को जिन्ना पाकिस्तान के पहले राष्ट्रपति बन गए। साथ ही पाक में 14 अगस्त को लहराए जाने वाले झंडे की डिजाइन भी तय हो गई। यह डिजाइन बाराबंकी (यूपी) के अमीरुद्दीन किदवई ने तैयार की थी। इस बीच 13 अगस्त को रेडक्लिफ ने बंटवारे का नक्शा माउंटबेटेन को सौंप दिया। कुछ देर गंभीरता से नक्शा देखने के बाद माउंटबेटेन ने उसे एक हरे रंग के संदूक में बंद कर दिया।

 

हिदायत दी कि इस संदूक को उनकी मंजूरी के बिना कोई नहीं खोलेगा। रेडक्लिफ अच्छी तरह जानता था कि वह अपने काम के साथ न्याय नहीं कर पाया है, लिहाजा वह उसी दिन लंदन लौट गया। हालांकि, यह खबर लीक हो चुकी थी कि विभाजन की लकीरें खींचते-खींचते रेडक्लिफ बिना सोचे-समझे लाहौर और ढाका जैसे दो बड़े शहर पाक के हिस्से में डाल गया है।

इससे दोनों शहरों में दंगों ने वीभत्स रूप ले लिया और इसकी आग अमृतसर और कलकत्ता तक भी पहुंच गई। मगर 13 अगस्त खत्म होते-होते बहुत कुछ बदल चुका था। पूर्वोत्तर की मणिपुर सहित कई रियासतों ने भारत के साथ आने की घोषणा कर दी थी। कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने मेजर जनरल जनक सिंह को अपना नया प्रधानमंत्री बना लिया। पांडिचेरी के फ्रांसीसी अफसरों ने भारत में आजादी के जश्न की छूट दे दी।

शेयर करे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *