नई दिल्ली :- सुप्रीम कोर्ट ने वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 से जुड़े मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कानून को पूरी तरह खारिज करने से इनकार कर दिया लेकिन इसके दो प्रावधानों पर रोक लगा दी। अदालत ने कहा कि कुछ धाराएं संवैधानिक मूल्यों के अनुरूप नहीं हैं और इन पर पुनर्विचार जरूरी है। इस फैसले के बाद राजनीतिक हलकों में नई बहस शुरू हो गई है।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने बयान देते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने यह कानून लाकर धार्मिक विवादों को हवा देने की कोशिश की थी। उनके अनुसार इस तरह के कानून का उद्देश्य समाज में भाईचारा बढ़ाने के बजाय विभाजन पैदा करना था। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया और इसे न्यायपालिका की सजगता का उदाहरण बताया। साथ ही उन्होंने कहा कि अब सरकार को यह समझना चाहिए कि किसी भी धर्म या समुदाय के अधिकारों के साथ छेड़छाड़ स्वीकार्य नहीं होगी।
वहीं सत्तापक्ष का कहना है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए लाया गया था। उनका तर्क है कि अदालत ने कानून को निरस्त नहीं किया है जिससे यह साबित होता है कि इसके मूल उद्देश्य पर सवाल नहीं उठाया जा सकता। हालांकि विपक्ष इसे एक बड़ी नैतिक हार करार दे रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले ने एक बार फिर कानून निर्माण प्रक्रिया में संतुलन और न्यायपालिका की भूमिका को सामने रखा है। अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी अधिनियम को लागू करते समय संविधान की भावना और नागरिकों के अधिकार सर्वोपरि रहेंगे।
फिलहाल इस फैसले के बाद देश भर में राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई है और यह मुद्दा आने वाले समय में संसद से लेकर सड़क तक गूंजता रहेगा।
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