उत्तराखंड (देहरादून):- उत्तराखंड में निकाय चुनाव के बीच नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य के एक वायरल नारे को लेकर राजनीतिक माहौल गरमा गया है। इस नारे को लेकर उन्हें तुष्टिकरण का आरोप लग रहा है और विपक्षी दल इस पर सवाल उठा रहे हैं।
उत्तराखंड में आगामी निकाय चुनावों से पहले राजनीतिक तापमान गर्मा चुका है। इस बीच नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य का एक बयान या नारा वायरल हो गया है जिसने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। यशपाल आर्य का नारा “हमें चाहिए वोट, हमें चाहिए हमारा हक” सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गया है और इस पर तुष्टिकरण का आरोप लगने से पार्टी के भीतर भी चर्चा का माहौल बन गया है। विपक्षी दलों ने इस नारे को लेकर आर्य पर निशाना साधा है जबकि समर्थक इसे राज्य के विभिन्न समुदायों की आवाज़ के रूप में देख रहे हैं।
यशपाल आर्य का यह नारा जब से वायरल हुआ है तब से राज्य के राजनीतिक हलकों में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। भाजपा और अन्य विपक्षी दलों का कहना है कि यह बयान एक खास समुदाय को लुभाने के लिए दिया गया है जो कि तुष्टिकरण की राजनीति का हिस्सा है। आर्य के नारे में उनकी पार्टी कांग्रेस का ध्यान एक विशेष वर्ग पर केंद्रित हो गया है जिसे विपक्षी दल भाजपा ने ‘वोट बैंक की राजनीति’ का हिस्सा बताया है।
हालांकि, आर्य और उनकी पार्टी कांग्रेस ने इन आरोपों को खारिज किया है। उनका कहना है कि यह नारा राज्य के हर नागरिक की आवाज़ है और चुनावों में सभी वर्गों की भागीदारी जरूरी है। कांग्रेस नेताओं का कहना है कि यह नारा किसी विशेष समुदाय के लिए नहीं बल्कि हर वर्ग के लिए है जो अपने अधिकारों को लेकर जागरूक हो चुका है।
उत्तराखंड में निकाय चुनावों के बाद प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी होने हैं। ऐसे में राजनीतिक दल अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं। यशपाल आर्य का नारा इसी चुनावी प्रतिस्पर्धा का हिस्सा बताया जा रहा है जिसमें राजनीतिक दल वोटों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।
भाजपा के नेता और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने यशपाल आर्य के नारे को ‘राजनीतिक तुष्टिकरण’ बताया है। उनका कहना है कि यह बयान समाज में मतभेद और असहमति पैदा करने वाला हो सकता है। धामी ने आरोप लगाया कि कांग्रेस हमेशा सत्ता में रहते हुए केवल एक वर्ग को ध्यान में रखकर फैसले करती है जो समाज के बाकी हिस्सों के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
इस आरोप-प्रत्यारोप के बीच कांग्रेस पार्टी ने भी अपनी सफाई दी है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और प्रदेश अध्यक्ष करन महरा ने कहा कि कांग्रेस के लिए हर समुदाय की आवाज़ समान रूप से महत्वपूर्ण है और वह हर किसी के हक की बात करती है। महरा का कहना है कि यशपाल आर्य का नारा किसी खास समुदाय को ध्यान में रखकर नहीं बल्कि हर वर्ग के अधिकारों की रक्षा के लिए था।
कांग्रेस पार्टी ने यह भी कहा कि भाजपा हमेशा अपने चुनावी रणनीतियों में तुष्टिकरण का आरोप कांग्रेस पर लगाती है लेकिन सच यह है कि भाजपा ने पिछले कई वर्षों में समाज के विभिन्न वर्गों को केवल अपने हितों के लिए ही महत्व दिया है।
निकाय चुनावों के बीच यह विवाद राज्य के सामाजिक समीकरण पर भी असर डाल सकता है। खासतौर पर राज्य के कुछ हिस्सों में कांग्रेस और भाजपा के बीच तीव्र राजनीतिक प्रतिस्पर्धा चल रही है। दोनों दल अपने-अपने वोट बैंक को लेकर सावधान हैं और एक-दूसरे पर आरोप लगाने के अवसरों का फायदा उठा रहे हैं।
यशपाल आर्य का वायरल नारा जहां एक ओर कांग्रेस को अपने समाजिक आधार को मजबूत करने का अवसर दे रहा है वहीं भाजपा इसे अपनी रणनीतिक कमजोरी के तौर पर देख रही है। चुनावों में इस तरह के बयानों से पार्टी का दिमागी संतुलन और विरोधियों के खिलाफ प्रतिक्रिया के स्वर भी स्पष्ट हो सकते हैं।
यशपाल आर्य का वायरल नारा उत्तराखंड के निकाय चुनावों में महत्वपूर्ण मोड़ ला सकता है। यह न केवल राज्य की राजनीति में बल्कि समाज में भी व्यापक चर्चा का विषय बन गया है। तुष्टिकरण के आरोप और राजनीतिक रणनीतियों के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि यह बयान आगे चलकर चुनावी परिणामों पर कैसे असर डालता है। भारतीय राजनीति में ऐसे बयानों का अहम प्रभाव होता है और यह देखना जरूरी है कि यह विवाद कैसे खत्म होता है।
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