कोटा (राजस्थान):- कोटा शहर में एक और दर्दनाक घटना सामने आई है जिसमें गुजरात की एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली। कोटा में रहकर मेडिकल की परीक्षा की तैयारी कर रही छात्रा ने पंखे से लटककर अपनी जान दी। इस घटना ने एक बार फिर से कोटा में छात्रों के बीच आत्महत्याओं की बढ़ती संख्या पर सवाल खड़े कर दिए हैं जिससे शहर में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चिंता बढ़ गई है।
मृतक छात्रा की पहचान गुजरात के एक छोटे शहर से होने के रूप में हुई है। पुलिस के अनुसार छात्रा पिछले कुछ महीनों से कोटा में रहकर मेडिकल की परीक्षा की तैयारी कर रही थी। घटना उस समय घटी जब छात्रा के कमरे से अजीब सी गंध आने लगी और आसपास के छात्रों ने इसकी जानकारी पुलिस को दी। पुलिस ने मौके पर पहुंचकर छात्रा का शव पंखे से लटकते हुए पाया। प्रारंभिक जांच में यह सामने आया कि छात्रा मानसिक तनाव का सामना कर रही थी हालांकि आत्महत्या का सटीक कारण अभी स्पष्ट नहीं हो पाया है।
कोटा को देशभर में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए एक प्रमुख केंद्र माना जाता है। यहां हर साल हजारों छात्र विभिन्न कोचिंग संस्थानों में दाखिला लेते हैं लेकिन यहां की अत्यधिक प्रतिस्पर्धा और बढ़ते मानसिक दबाव के कारण कई छात्रों के लिए यह शहर एक चुनौतीपूर्ण माहौल बन जाता है। पिछले कुछ वर्षों में कोटा में आत्महत्या की घटनाएं लगातार बढ़ी हैं और ये घटनाएं न केवल छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे को उजागर करती हैं बल्कि कोटा के शिक्षा तंत्र पर भी गंभीर सवाल खड़ा करती हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की घटनाओं का मुख्य कारण अत्यधिक प्रतिस्पर्धा, अकेलापन, और असफलता का डर हो सकता है। छात्रों के मन में सफलता की अत्यधिक लालसा होती है और जब वे अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाते तो मानसिक दबाव और तनाव में वृद्धि होती है। कई बार यह दबाव इतना अधिक होता है कि छात्र आत्महत्या जैसा कठोर कदम उठा लेते हैं।
कोटा में छात्राओं की आत्महत्या की घटनाएं कुछ विशेष रूप से चिंता का कारण बनती हैं क्योंकि यह दर्शाता है कि यहां के शिक्षा वातावरण में समान्यत: छात्र और छात्राओं दोनों के मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा की जाती है।
कोटा के कोचिंग संस्थानों पर छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर सवाल उठ रहे हैं। कुछ संस्थान अब छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य काउंसलिंग देने के दावे कर रहे हैं लेकिन यह उपाय पूरी तरह से प्रभावी नहीं हो पा रहे हैं। छात्रों की मानसिक स्थिति को बेहतर समझने और उनके लिए सहायक वातावरण तैयार करने के लिए शिक्षा संस्थानों को और अधिक गंभीर कदम उठाने की जरूरत है।
इस समस्या से निपटने के लिए राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन को भी एक सख्त नीति बनानी चाहिए। कुछ संस्थानों ने अब छात्रों को तनाव से निपटने के लिए नियमित काउंसलिंग सेशन और तनाव कम करने वाली गतिविधियों को शामिल करना शुरू किया है लेकिन यह कदम अभी भी नाकाफी प्रतीत होते हैं। साथ ही माता-पिता और छात्रा के परिवार को भी समझने की जरूरत है कि बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि उनके शैक्षिक परिणामों पर ध्यान देना।
कोटा में हुई इस ताजा आत्महत्या ने फिर से यह साबित कर दिया कि यहां के छात्रों को मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए एक बेहतर और समर्थनात्मक वातावरण की