प्रयागराज (उत्तर प्रदेश):- इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए स्पष्ट किया है कि मकान मालिक अपनी संपत्ति के उपयोग का निर्णायक होता है। अदालत ने कहा कि वास्तविक आवश्यकता साबित होने पर मकान मालिक का संपत्ति पर अधिकार सर्वोपरि होता है। यह निर्णय एक दुकान से जुड़े मामले में दिया गया जिसमें मकान मालिक ने अपने बेटों के लिए दुकान खाली कराने की मांग की थी। मऊ निवासी किरायेदार श्याम सुंदर अग्रवाल ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी जिसमें उन्होंने मकान मालिक गीता देवी और उनके परिवार द्वारा दायर बेदखली प्रार्थना पत्र को चुनौती दी।
गीता देवी ने अदालत में दलील दी कि उनके पति के निधन के बाद उनके परिवार के पास आय का कोई अन्य स्रोत नहीं है। उन्होंने बताया कि परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है और उनके बेटों के लिए स्वतंत्र व्यवसाय शुरू करने के लिए दुकान खाली कराना आवश्यक है। न्यायमूर्ति अजित कुमार ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि मकान मालिक अपनी संपत्ति का उपयोग कैसे करेगा यह तय करना किरायेदार का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि मकान मालिक की वास्तविक आवश्यकता को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर मकान मालिक अपनी आवश्यकता को सही ढंग से साबित कर देता है तो किरायेदार को संपत्ति खाली करनी ही होगी। मकान मालिक की संपत्ति पर उनका अधिकार सर्वोपरि है। यह फैसला उन मकान मालिकों के लिए राहतभरा साबित हो सकता है जिन्हें किरायेदारों की वजह से अपनी संपत्ति का उपयोग करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि किरायेदार मकान मालिक की संपत्ति के उपयोग में बाधा नहीं डाल सकते।
यह फैसला केवल कानूनी ही नहीं बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह संपत्ति अधिकारों की रक्षा करता है और मकान मालिकों को न्याय पाने का मार्ग प्रदान करता है।