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प्रदूषण और स्वास्थ्य, नसों में खून का थक्का बनने का खतरा 39% से 100% तक बढ़ा

नई दिल्ली:- प्रदूषण का असर अब बड़े शहरों से निकलकर छोटे कस्बों तक पहुंच चुका है। इस बीच वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों पर एक नया और चौंकाने वाला शोध सामने आया है। अमेरिका में 17 वर्षों तक किए गए एक अध्ययन में यह पाया गया है कि प्रदूषित वायु के संपर्क में रहने से नसों में रक्त का थक्का बनने का खतरा 39 से 100 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। यह शोध 6,650 से अधिक वयस्कों पर किया गया।

थ्रोम्बोम्बोलिज्म (नसों में रक्त का थक्का जमना) को गंभीर समस्या के रूप में बताया गया है। अगर इसे समय रहते न पहचाना जाए तो यह रक्त प्रवाह को अवरुद्ध कर सकता है और गंभीर स्वास्थ्य जटिलताओं का कारण बन सकता है।

अध्ययन के परिणाम ब्लड जर्नल में प्रकाशित किए गए हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि अमेरिका के न्यूयॉर्क, शिकागो, लॉस एंजिलिस और अन्य प्रमुख शहरों के 3.7 प्रतिशत वयस्कों (248 लोग) में नसों में रक्त के थक्के पाए गए। इन वयस्कों को पीएम 2.5 और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषकों के उच्च स्तर के संपर्क में आना पड़ा। पीएम 2.5 प्रदूषण के संपर्क में आने से रक्त के थक्के बनने का खतरा 39 प्रतिशत बढ़ गया जबकि नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के संपर्क में आने से यह खतरा 100 प्रतिशत तक बढ़ गया।

शोधकर्ताओं का कहना है कि प्रदूषण का संपर्क सूजन को बढ़ावा देता है और रक्त का थक्का जमने की प्रक्रिया को तेज कर सकता है। यह हृदय और श्वसन संबंधी बीमारियों से भी जुड़ा हुआ है। यह अमेरिका में प्रदूषण और स्वास्थ्य पर सबसे बड़ा और व्यापक अध्ययन माना जा रहा है।

इस बीच केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने शुक्रवार को एक कार्यक्रम में कहा कि भारत में परिवहन विभाग लगभग 40 प्रतिशत प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने यह भी बताया कि मंत्रालय दिल्ली में प्रदूषण और ट्रैफिक जाम दोनों को दूर करने के लिए एक परियोजना पर काम कर रहा है। गडकरी ने बताया कि दिल्ली में प्रदूषण का मुख्य कारण पंजाब, हरियाणा और आसपास के क्षेत्रों में चावल के खेतों से निकलने वाली पराली है जिसे जलाने से प्रदूषण बढ़ता है। उन्होंने कहा कि इस पराली से इथेनॉल और बायो-एविएशन ईंधन जैसे उत्पादों का निर्माण किया जाएगा जो प्रदूषण कम करने में मदद करेंगे।

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