छत्तीसगढ़ (मध्यप्रदेश):- मध्यप्रदेश में एक अनूठी और दर्दनाक कुप्रथा घोड़ी लाडी को लेकर हाल ही में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई है। इस कुप्रथा के तहत महिलाओं को अपने पति या परिवार के किसी अन्य सदस्य को अपमानजनक तरीके से सजा दिलवाने के लिए सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा किया जाता है। एक महिला ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि कैसे उसे इस कुप्रथा की शिकार बनी और कैसे उसे शारीरिक और मानसिक यातनाओं से गुजरना पड़ा।
यह घटना मध्यप्रदेश के छत्तीसगढ़ सीमा से सटे एक छोटे से गांव में हुई जहां एक महिला को अपनी शादीशुदा जिंदगी में खौ़फनाक और अपमानजनक अनुभवों का सामना करना पड़ा। महिला का कहना है कि एक दिन अचानक गांव में अफवाह फैली कि उनके पति ने किसी अन्य महिला के साथ गलत संबंध बनाए हैं। बस इस बात को लेकर उसके ससुरालवालों ने उसे इस कुप्रथा के तहत सजा देने का फैसला किया।
सजा का तरीका और दर्द
महिला ने बताया कि अफवाहों के बाद उसके पति को गांव के लोगों के सामने न केवल अपमानित किया गया बल्कि उसका गुस्सा उस पर उतारते हुए उसकी जमकर पिटाई भी की गई। मुझे मारा कपड़े फाड़े और मेरे कंधे पर मेरे पति को बिठा दिया गया महिला ने अपनी आपबीती बताते हुए कहा। यह कुप्रथा महिलाओं को मानो एक घोड़ी की तरह इस्तेमाल करने की परंपरा पर आधारित है जिसमें महिला को सबके सामने अपनी अपमानजनक स्थिति का सामना करना पड़ता है।
घोड़ी लाडी परंपरा के अनुसार किसी महिला के पति को शक की बिना पर दोषी ठहराया जाता है और फिर महिला को उसकी पिटाई और शारीरिक यातनाओं का सामना करना पड़ता है। इसे एक तरह की सामाजिक सजा मानकर उसे परिवार और समाज के सामने सुधारने की कोशिश की जाती है।
कुप्रथा का ऐतिहासिक और सामाजिक संदर्भ
घोड़ी लाडी परंपरा मध्यप्रदेश और इसके आसपास के कुछ इलाकों में दशकों से चली आ रही है। यह एक पुरानी और गलत परंपरा है जिसमें पति या परिवार के अन्य सदस्य को दोषी ठहराए बिना महिला को ही अपमानित किया जाता है। इस परंपरा का मुख्य उद्देश्य समाज में किसी तरह का डर या अनुशासन बनाए रखना था लेकिन यह समाज के कमजोर तबके, खासकर महिलाओं के लिए अत्यंत हानिकारक साबित हो रहा है।
सरकार और समाज का रुख
इस कुप्रथा के खिलाफ सरकार और सामाजिक संगठन सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। मध्यप्रदेश सरकार ने कई बार इस तरह की कुप्रथाओं के खिलाफ सख्त कदम उठाने की बात की है लेकिन जमीनी स्तर पर इसे जड़ से उखाड़ने में बहुत चुनौतियाँ हैं। स्थानीय पुलिस और समाज सेवी संगठन लगातार प्रयास कर रहे हैं ताकि महिलाओं के खिलाफ हो रहे इस तरह के अत्याचारों को रोका जा सके और जागरूकता फैलाई जा सके।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस कुप्रथा को खत्म करने के लिए केवल कानूनी कदमों से अधिक समाज में महिलाओं की स्थिति को सुधारने की आवश्यकता है। परिवारों में महिलाओं को बराबरी का दर्जा देना उन्हें अपने अधिकारों के बारे में जागरूक करना और शिक्षा का प्रसार इस तरह की कुप्रथाओं के खिलाफ सबसे प्रभावी उपाय साबित हो सकता है।
मध्यप्रदेश में घोड़ी लाडी जैसी कुप्रथाएँ न केवल महिलाओं के लिए शारीरिक और मानसिक यातनाओं का कारण बनती हैं बल्कि यह समाज के विकास को भी अवरुद्ध करती हैं। जब तक समाज में महिलाओं के अधिकारों और समानता की स्थिति में सुधार नहीं होता तब तक ऐसी कुप्रथाओं का उन्मूलन कठिन रहेगा। इस मामले ने एक बार फिर यह सवाल उठाया है कि क्या हम अपनी पुरानी परंपराओं की आलोचना किए बिना महिलाओं को बराबरी का दर्जा दे सकते हैं?