जम्मू कश्मीर (श्रीनगर):- जम्मू डेवलेपमेंट अथॉरिटी (JDA) ने मुठी टाउनशिप के पास स्थित कश्मीरी पंडित प्रवासियों की 12 अस्थायी दुकानों को ध्वस्त कर दिया जिससे कश्मीरी पंडित समुदाय में गहरी नाराजगी फैल गई है। यह घटना कश्मीर के विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए एक और मुश्किल वक्त लेकर आई है जो पहले ही 1990 के दशक से आतंकवाद और सामाजिक असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। कश्मीरी पंडितों का कहना है कि ये दुकानें उनके जीवन और आजीविका का मुख्य साधन हैं और इन दुकानों को ध्वस्त करने से उनकी रोजी-रोटी पर गहरा संकट आ गया है। दुकानदारों का आरोप है कि उन्हें बिना किसी पूर्व सूचना के उनकी दुकानों को तोड़ने का आदेश दिया गया। हमने 30 सालों से यहां अपनी दुकानें चला रखी थीं अब अचानक बिना किसी नोटिस के दुकानें तोड़ी जा रही हैं एक प्रभावित दुकानदार ने कहा।
स्थानीय प्रशासन ने बताया कि इन दुकानों को JDA की जमीन पर अवैध रूप से बनाया गया था और इस वजह से कार्रवाई की गई। वहीं राहत और पुनर्वास विभाग के आयुक्त अरविंद करवानी ने घटनास्थल का दौरा किया और दुकानदारों को आश्वासन दिया कि मुठी टाउनशिप के फेज-2 में एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स का निर्माण किया जाएगा। उन्होंने कहा कि प्रभावित दुकानदारों को जल्द ही नई दुकानें आवंटित की जाएंगी।
यह कार्रवाई न केवल कश्मीरी पंडितों के लिए बल्कि पूरे जम्मू कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य में एक नई बहस को जन्म दे रही है। पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने इस घटना की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक वीडियो साझा किया जिसमें दुकानदारों की स्थिति को दिखाया गया है और JDA की कार्रवाई की निंदा की गई है। महबूबा मुफ्ती ने कहा कि यह कार्रवाई कश्मीरी पंडितों की पहले से मुश्किल जीवन को और जटिल बना रही है।
कश्मीरी पंडित समुदाय के नेताओं ने भी प्रशासन की आलोचना की है और यह आरोप लगाया है कि बिना पुनर्वास और वित्तीय सहायता के उनकी रोजी-रोटी को छीन लेना गलत है। उनका कहना है कि इस तरह की कार्रवाई से उनके समुदाय की आर्थिक स्थिति और भी खराब हो जाएगी जो पहले से ही विस्थापन और सामाजिक संघर्ष का सामना कर रहा है।
कश्मीरी पंडित प्रवासी समुदाय ने राज्य सरकार और उपराज्यपाल से इस मुद्दे में हस्तक्षेप करने की अपील की है। उनका कहना है कि जब तक उन्हें उचित पुनर्वास और वित्तीय सहायता नहीं मिलती तब तक उनके लिए अपनी रोजी-रोटी चलाना मुश्किल हो जाएगा। इस घटना ने कश्मीरी पंडितों की दशकों पुरानी संघर्ष को फिर से उजागर किया है जो अब भी अपने अस्तित्व और सम्मान के लिए लड़ रहे हैं।