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अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (आईसीसी) बनाम अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे): भारत की सदस्यता के पीछे की कहानी

महाराष्ट्र(मुंबई):-अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में भारत की भूमिका को समझने के लिए यह जानना महत्वपूर्ण है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) का सदस्य क्यों नहीं है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) का हस्ताक्षरकर्ता है।

अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC)

आईसीसी एक अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय है जो युद्ध अपराधों नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराधों के लिए व्यक्तियों को दोषी ठहराने के लिए स्थापित किया गया था। आईसीसी की स्थापना 1998 में रोम संविधि द्वारा की गई थी जिसे 123 देशों ने अनुमोदित किया है।

हालांकि भारत आईसीसी का सदस्य नहीं है। इसका कारण यह है कि भारत ने रोम संविधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। भारत का मानना है कि आईसीसी की संरचना और कार्य प्रक्रिया में कई कमियां हैं जो उसकी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों को प्रभावित कर सकती हैं।

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ)

आईसीजे संयुक्त राष्ट्र का मुख्य न्यायिक अंग है, जो अंतर्राष्ट्रीय विवादों को हल करने और राज्यों के बीच कानूनी विवादों का निपटारा करने के लिए स्थापित किया गया है। आईसीजे की स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी।

भारत आईसीजे का हस्ताक्षरकर्ता है और इसकी सदस्यता को मान्यता देता है। भारत ने आईसीजे के न्यायाधीशों का चुनाव करने में भी भाग लिया है।

भारत की सदस्यता के पीछे की कहानी को समझने से पता चलता है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत का आईसीसी की सदस्यता से इनकार करना और आईसीजे की सदस्यता को मान्यता देना उसकी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए एक रणनीतिक निर्णय है।

यह लेख आईसीसी और आईसीजे के बीच के अंतर को समझने में मदद करेगा और भारत की सदस्यता के पीछे की कहानी को उजागर करेगा।

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