नई दिल्ली:- देश के कई राज्य वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं और कर्ज के बोझ के चलते उनकी स्थिति बिगड़ती जा रही है। आर्थिक शोध एजेंसी क्रिसिल के अनुसार 2024-25 के दौरान इन राज्यों का कर्ज जीडीपी के मुकाबले 31-32 प्रतिशत के स्तर पर रहेगा। पिछले वित्त वर्ष में भी यह आंकड़ा 32 प्रतिशत था। इससे स्पष्ट है कि राज्यों की वित्तीय स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन राज्यों का लगभग 13 प्रतिशत राजस्व केवल कर्ज के ब्याज चुकाने में खर्च हो जाएगा जो एक गंभीर वित्तीय संकट की ओर इशारा करता है। इस कर्ज के ब्याज का भुगतान राज्य सरकारों पर अतिरिक्त दबाव डाल रहा है और वित्त आयोग ने स्पष्ट किया है कि कुल राजस्व का 10 प्रतिशत से ज्यादा कर्ज चुकाने में नहीं होना चाहिए जो कि इन आंकड़ों से कहीं अधिक है।
इसके बावजूद राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त योजनाओं का वितरण लगातार जारी है जिससे राज्यों की वित्तीय स्थिति और भी कमजोर होती जा रही है। मुफ्त रेवड़ियों के कारण राज्यों को न केवल कर्ज चुकाने में कठिनाई हो रही है बल्कि उनका विकास भी प्रभावित हो रहा है। राज्य सरकारों को चाहिए कि वे इन योजनाओं के वितरण में विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाएं ताकि आर्थिक स्थिति को सुधारने की दिशा में कुछ कदम उठाए जा सकें।
इन आर्थिक चिंताओं के बावजूद यह माना जा रहा है कि आने वाले समय में राज्यों पर कर्ज का बोझ और बढ़ सकता है क्योंकि अधिकतर राज्यों के पास अपनी वित्तीय स्थिति सुधारने के लिए कोई ठोस योजना नहीं दिखती।