तेलंगाना:- निवारक हिरासत को एक कठोर प्रावधान करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मनमाने और नियमित तरीके से इसे लागू करने के किसी भी कदम को शुरू में ही खत्म कर देना चाहिए। शीर्ष अदालत ने कहा कि निवारक हिरासत का उद्देश्य किसी को सजा देना नहीं, बल्कि उसे गलती करने से रोकना है।
सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्र की पीठ ने तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।
हाईकोर्ट ने हिरासत में लिए गए व्यक्ति की अपील खारिज कर दी थी। पीठ ने कहा कि निवारक हिरासत का आदेश केवल सार्वजनिक अव्यवस्था के मामले में दिया जा सकता है, कानून और व्यवस्था की समस्याओं के लिए नहीं। पीठ ने आगे कहा, कानून और व्यवस्था की स्थिति से निपटने में सरकार की अक्षमता इसे लागू करने का बहाना नहीं होनी चाहिए। इस सख्त उपाय को पहली उपलब्ध अवस्था में ही समाप्त किया जाना चाहिए।
मौजूदा मामले में अपीलकर्ता को पिछले साल 12 सितंबर को तेलंगाना में राचाकोंडा पुलिस आयुक्त के आदेश पर तेलंगाना खतरनाक गतिविधियां रोकथाम अधिनियम, 1986 के तहत गिरफ्तार किया गया था। चार दिन बाद, तेलंगाना हाईकोर्ट ने हिरासत आदेश पर आदेश उठाने वाली उसकी याचिका खारिज कर दी थी।
शक्ति का प्रयोग सावधानी से हो
शीर्ष अदालत ने अपने हालिया आदेश में कहा कि यह अच्छी तरह स्थापित कानून है कि निवारक हिरासत संबंधी किसी भी अधिनियम के तहत शक्ति का प्रयोग बहुत ही सावधानी और संयम के साथ किया जाना चाहिए। इसमें कहा गया है कि अभियोजन का लंबित रहना निवारक हिरासत के आदेश पर कोई बाधा नहीं है और निवारक हिरासत का आदेश भी अभियोजन पर बाधा नहीं है।
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