जयपुर (राजस्थान):- राजस्थान विधानसभा चुनाव का प्रचार गुरुवार को समाप्त हो गया मगर इस अभियान के दौरान जातीय और वर्गीय गोलबंदी की दिखी झलक से साफ है कि राजनीतिक पार्टियों की सियासी किस्मत तय करने में इस गोलबंदी की खास भूमिका होगी। खास बात यह है कि चुनाव अभियान में नजर आयी इस दो स्तरीय गोलबंदी में सत्ता की दावेदार दोनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और भाजपा की अपनी-अपनी पैठ और हिस्सेदारी है।
शहरी इलाकों में भाजपा की पकड़ मजबूत
शहरी इलाकों में भाजपा की पैठ कायम है और शहरी वोटरों को रिझाने के लिए कांग्रेस को अब भी काफी परिश्रम की दरकार नजर आ रही है। इसी तरह राजस्थान के ग्रामीण बहुल इलाकों में कांग्रेस और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पैठ से जूझना पड़ रहा है। राजस्थान के मतदाताओं की गोलबंदी का यह स्वरूप ही चुनाव को रोचक बना रहा, जिसमें दोनों पार्टियां कांग्रेस और भाजपा अपने-अपने लिए अवसर देख रही हैं। यही वजह रही कि चुनाव अभियान के अंतिम दो-तीन दिनों में दोनों पार्टियों के दिग्गजों ने आखिरी दांव के तौर पर तीखे शब्द बाणों के तीर चलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस और गांधी परिवार पर कठोर हमले करने से परहेज नहीं किया और जातीय-वर्गीय गोलबंदी का सियासी दांव चलते हुए दिवंगत राजेश पायलट से लेकर सचिन पायलट के साथ कांग्रेस में हुए सलूक का मुद्दा उछालने की कोशिश की। वहीं, राहुल गांधी ने भी पनौती से लेकर जेब कतरे की उपमा देने से गुरेज नहीं किया।
गुर्जर वोट पर पीएम मोदी की नजर
पीएम के इस दांव का लक्ष्य साफ तौर पर राजस्थान के गुर्जर समुदाय को साधना है, जो पिछले कुछ चुनावों से कांग्रेस के साथ खड़ा दिखा है। सचिन पायलट के मौजूदा चुनाव में सीएम उम्मीदवार की दौड़ में नहीं होने को देखते हुए गुर्जर वर्ग इस बार मुखर नहीं है और भाजपा अपने अपने परंपरागत समर्थक वर्ग ब्राह्मण और राजपूतों के साथ इन्हें साधने में कसर नहीं छोड़ रही। वैसे जातीय और वर्गीय गोलबंदी का यह दांव शीर्ष स्तर पर ही नहीं चला जा रहा, बल्कि सूबे के चुनाव अभियान का भ्रमण करने के दौरान इसका नजारा लगभग हर जगह दिखा।
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