मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश):- परमहंस आश्रम शक्तेषगढ़ में एकादशी के पावन पर्व पर योगेश्वर महाप्रभु सदगुरुदेव भगवान स्वामी अड़गड़ानंद जी महाराज के दर्शन एवं सत्संग के लिए लालयित लाखों भक्तों ने इस एकादशी के पावन कुंभ पर गोता लगाया।
योगेश्वर महाप्रभु ने लाखों भक्तों को एकादशी की महत्ता के बारे में बताते हुए कहा कि देव प्रबोधिनी एकादशी भारत में प्राय 24 एकादशी मनाई जाती है अक्सर वैष्णव संत एकाकी एकादशी व्रत नहीं चूकते हैं उपवास रखते हैं, फिर फलहार और परायण का भी नियम है, सभी ओर से मन को समेट कर भगवान की ओर ले जाते हैं एकमात्र ईश्वर है उसकी दशा में विषय हो जाना ही एकादशी का पालन करना है।
यह जीव अनंत दशाओं में भटक रहा है, जब इसकी दशा में सुधार आया और उन्नत होते होते एक परमात्मा में विलय हुआ टन मुक्त होकर एकादशी की स्थिति को प्राप्त हो जाता है। तुलसीदास जी भी इसी को विनय पत्रिका मैं और स्पष्ट करते हुए कहा कि एकादशी एक मन बस कै सेवहु जाइ, सोई व्रत कर फल पावै आवा गमन नशाई, मां का एक की दशा होते ही जीव सहज ही मुक्त हो जाता है, यही फल है आवागमन अर्थात जन्म और मृत्यु से जीव सदा के लिए पर का जाता है।
परम शांति को कैवल्य पद एक स्थिति को प्राप्त कर लेता है परंतु साधक साधना भक्ति की शुरुआत कहां से करें तो परमात्मा में पूर्ण श्रद्धा समर्पण के साथ नाम का जाप और सद्गुरु के स्वरूप का ध्यान एक भरोसो एक बल एक आस विश्वास, स्वामी सीता नाथ सौ सेवक तुलसीदास ऋषियों ने त्योहारों के माध्यम से साधना सत्संग को समझाया है कि मनुष्य ईश्वर के भजन में रुचि ले और आचरण कम करें इसी से अनंत दशाओं से जीव बच सकता है जिससे एक दशा में जीव परमात्मा में समा जाए यही एकादशी है।
आश्रम में वरिष्ठ संतो में नारद महाराज जी, विरत विद्यानंद जी महाराज, तुलसी आनंद जी महाराज, विनयानंद जी महाराज चिंतन मयानंद जी महाराज, तानसेन जी महाराज ,गोविंद महाराज ,लाले महाराज जी, राम रक्षा नंद जी महाराज, आशीष महाराज,राम जी महाराज, दीपक महाराज, सूरज महाराज ,अनुभव आनंद जी महाराज , मौनी महाराज नेपाल वाले इत्यादि महात्मा ने एकादशी पर्व की महत्ता को विस्तार पूर्वक बताते हुए समझाया तत्पश्चात लाखों की संख्या में मौजूद भक्तगण प्रसाद रूपी फलहार लेकर अपने-अपने जनपदों की ओर रवाना हुए।
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