नई दिल्ली :- दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसने परिवार में संपत्ति को लेकर चल रही कई गलतफहमियों पर रोक लगा दी है। अदालत ने साफ कर दिया कि जब तक माता पिता जीवित हैं तब तक पोते पोतियों का दादा दादी की संपत्ति में कोई सीधा अधिकार नहीं बनता। यह निर्णय कृतिका जैन की उस याचिका पर आया जिसमें उन्होंने अपने हिस्से का दावा किया था। अदालत ने कहा कि भारतीय उत्तराधिकार कानून के अनुसार संपत्ति का अधिकार पहले सीधी संतान यानी बेटा या बेटी को ही मिलता है। इसके बाद ही अगली पीढ़ी का अधिकार उत्पन्न होता है।
इस फैसले के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि दादा दादी की संपत्ति पर सबसे पहले उनके बच्चे यानी माता पिता का ही हक है। पोते पोतियों को तभी अधिकार मिलेगा जब उनके माता पिता का देहांत हो जाए और संपत्ति का अधिकार उनके नाम पर आए। इस स्थिति में ही पोते पोतियों का हिस्सा बन सकता है। अदालत ने कहा कि कानूनी दृष्टि से पोते पोतियां अपने माता पिता के जीवित रहते सीधे तौर पर दादा दादी की संपत्ति पर दावा नहीं कर सकते।
यह फैसला समाज में उन परिवारों के लिए भी महत्वपूर्ण है जहां अक्सर दादा दादी की संपत्ति को लेकर झगड़े खड़े हो जाते हैं। कई बार पोते पोतियां अपने अधिकार का दावा करते हुए अदालत तक पहुंच जाते हैं। लेकिन इस निर्णय के बाद स्थिति स्पष्ट हो गई है कि उनका अधिकार केवल माता पिता के बाद ही मान्य होगा।
दिल्ली हाईकोर्ट के इस आदेश ने एक बार फिर उत्तराधिकार के सिद्धांत को सरल शब्दों में सबके सामने रख दिया है। अब किसी भी परिवार में यह विवाद नहीं रहना चाहिए कि पोते पोतियों को दादा दादी की संपत्ति पर कब अधिकार मिलेगा। अदालत का यह फैसला भविष्य में कई तरह के कानूनी झगड़ों को रोकने में सहायक साबित होगा।
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