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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 12 वर्षीय लड़के और 9 वर्षीय लड़की की शादी को किया अमान्य

प्रयागराज (उत्तर प्रदेश):- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक पारिवारिक न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई करते हुए 2004 में हुए एक 12 वर्षीय लड़के और 9 वर्षीय लड़की की शादी को अमान्य घोषित कर दिया है। न्यायालय ने पति को अपनी पूर्व पत्नी को 25 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया। यह फैसला 25 अक्टूबर को न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की पीठ ने सुनाया।

मामला और अपील की पृष्ठभूमि

यह मामला गौतम बुद्ध नगर जिले से संबंधित है। अपीलकर्ता ने पारिवारिक न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा दिए गए फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी। अपील में, पति ने 28 नवंबर, 2004 को संपन्न अपनी शादी को अवैध घोषित करने का अनुरोध किया था। उच्च न्यायालय ने पाया कि पारिवारिक न्यायालय ने मामले को खारिज करते समय गलती की थी और यह सही निर्णय नहीं था।

अदालत में पेश किए गए दस्तावेज़ों के अनुसार, अपीलकर्ता का जन्म 7 अगस्त, 1992 को हुआ था जबकि प्रतिवादी पत्नी का जन्म 1 जनवरी, 1995 को हुआ था। उच्च न्यायालय ने यह माना कि अपीलकर्ता की आयु 18 वर्ष से अधिक थी और वह व्यक्तिगत रूप से इस मुकदमे को दायर करने का अधिकार रखता था। सर्वोच्च न्यायालय के एक पूर्व निर्णय के अनुसार, अपीलकर्ता को 23 वर्ष की आयु तक इस प्रकार की अपील दायर करने की अनुमति थी।

मुआवजे का आदेश

उच्च न्यायालय ने यह भी आदेश दिया कि प्रतिवादी पत्नी को एक महीने के भीतर 25 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। यदि निर्धारित समय सीमा के भीतर भुगतान नहीं किया जाता है, तो राशि पर 8% की ब्याज दर लागू की जाएगी जब तक कि पूरा निपटान न हो जाए। न्यायालय का यह निर्देश बाल विवाह के खिलाफ कानूनी दृष्टिकोण और सामाजिक सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है।

बाल विवाह पर कानूनी स्थिति

यह फैसला बाल विवाह निरोधक अधिनियम और इसके तहत दी गई सुरक्षा का एक सटीक उदाहरण है। न्यायालय ने यह रेखांकित किया कि बाल विवाह कानून के खिलाफ है और इसे किसी भी परिस्थिति में मान्यता नहीं दी जा सकती। इस निर्णय ने न केवल अपीलकर्ता के अधिकारों की रक्षा की है, बल्कि बाल विवाह की प्रथा को हतोत्साहित करने का भी प्रयास किया है।

निर्णय का सामाजिक प्रभाव

इस फैसले से बाल विवाह के मामलों में एक मजबूत संदेश जाएगा कि कानून के सामने ऐसी शादियाँ स्वीकार्य नहीं हैं। यह आदेश भविष्य में होने वाले ऐसे मामलों के लिए एक मिसाल पेश करेगा और बाल विवाह की सामाजिक बुराई के खिलाफ कानूनी प्रणाली के रुख को और भी मजबूत करेगा।

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