विदेश:- ईरान-इस्राइल के बीच चल रहे तनाव से पूरे पश्चिम एशिया में संकट पैदा हो गया है। कहीं शेयर बजार धड़ाम हो रहे हैं, तो कहीं तेल के दामों में भावों में उछाल आ गया है। वहीं भारत में भी कूटनीतिक गलियारों में रातों की नींद उड़ गई है।
भारत को भी स्पष्ट अनुमान है कि दोनों देशों के बीच इस संघर्ष में वह कहीं न कहीं नाजुक कूटनीतिक हालात में खड़ा है। भारत के लिए ऐसी स्थिति रूस-यूक्रेन जंग में भी नहीं पैदा हुई थी। इस समय यह पूरा क्षेत्र बारूद के ढेर पर है। ईरान और इस्राइल अभी तक शेडो वॉर या प्रॉक्सी वॉर लड़ रहे थे, लेकिन पहले इस्राइल का ईरान के सीरिया स्थित वाणिज्य दूतावास पर हमला, फिर ईरान का मिसाइलों से पलटवार और अब इस्राइल की ईरान पर जवाबी कार्रवाई कहीं न कहीं दुनिया को नए वॉर जोन के मुहाने पर ले जा रही है। हलांकि इन दोनों की बीच सीधी जंग के आसार तो बेहद कम हैं, लेकिन इससे इस क्षेत्र की जियो-पॉलिटिक्स में बदलाव जरूर दिखाई देगा।
दोनों देशों से भारत के रिश्ते
भारत के लिए जितना महत्वपूर्ण इस्राइल है तो उतना ही बड़ा साझेदार ईरान भी है। जहां भारत हथियारों की खरीद और सैन्य टेक्नोलॉजी के लिए इस्राइल पर निर्भर है। भारत को हथियारों की आपूर्ति करने वाले देशों में चौथे नंबर पर है। पिछले 10 सालों में, भारत ने इस्राइल से लड़ाकू ड्रोन, मिसाइल, रडार समेत अन्य सर्विलांस सिस्टम भी खरीदे हैं। इस्राइल का हाइफा पोर्ट भी भारत के पास है।
वहीं ईरान भारत का लंबे समय से सहयोगी है, भारत के साथ पुराने समय से सांस्कृतिक संबंध रहे हैं और दशकों से ईरान नई दिल्ली के साथ खड़ा रहा है। भारत ने ईरान में ओमान की खाड़ी के नजदीक चाबहार बंदरगाह को विकसित किया है, जिसका उपयोग वह अफगानिस्तान और पश्चिमी एशिया तक सप्लाई के लिए करता है। चाबहार भारत और ईरान को दुनियाभर के समुद्री व्यापार से जुड़े रूट से जोड़ता है।
अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार और जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में एमेरिटस प्रोफेसर एसडी मुनि हम से बातचीत में कहते हैं कि इस्राइल के साथ हमारे रिश्ते बहुत अच्छे हैं और ईरान से हमारी जरूरतें हैं, तो इसलिए उनसे भी अच्छे संबंध हैं। वह कहते हैं कि इस्राइल पर हमारी निर्भरता सैन्य साजोसामान की है, इसके अलावा आतंकवाद को लेकर दोनों देश एकजुट हैं। वहीं ईरान से हम थोड़ा बहुत तेल खरीदते हैं और कृषि वस्तुएं और पशुधन उत्पाद उन्हें निर्यात करते हैं। हालांकि अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते अभी व्यापार कम हुआ है, लेकिन दोनों देशों की एकदूसरे पर निर्भरता अभी भी बनी हुई है। वहीं पाकिस्तान को काबू करने में ईरान भारत की अपरोक्ष रूप से मदद भी करता है।
भारत को करनी चाहिए शांति की पहल
प्रोफेसर एसडी मुनि कहते हैं कि ईरान और इस्राइल के साथ भारत के साथ डिप्लोमेटिक रिश्ते भी हैं। भारत नहीं चाहता कि पश्चिम एशिया जंग का अखाड़ा बने। क्योंकि उस स्थिति में भारत को एकतरफ होना पड़ेगा। इस्राइल से भारत आने वाले रक्षा साजो सामान की सप्लाई पर इसका पड़ेगा। चाबहार प्रोजेक्ट पर इसका असर पड़ सकता है, जिससे पश्चिमी और पूर्वी यूरोपीय देशों तक भारत की कनेक्टिविटी पर असर पड़ सकता है। वहीं तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिसके असर से भारत भी अछूता नहीं रहेगा। प्रोफेसर एसडी मुनि कहते हैं कि भारत को अमेरिका और रूस से बात करने का प्रयास करना चाहिए, ताकि दोनों देशों के बीच तनाव कम करने में मदद मिले।
क्या भारत को साध रहा ईरान?
वहीं ईरान भी मौजूदा हालात को देखते हुए भारत की बड़ी भूमिका देख रहा है। भारत में ईरान के राजदूत इराज इलाही ने कहा है कि भारत गाजा में इस्राइल के अभियान को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, ईरान क्षेत्र में शांति और स्थिरता लाने के लिए भारत की किसी भी मध्यस्थ भूमिका का स्वागत करेगा। उन्होंने कहा कि भारत सरकार इस्राइल की इन कार्रवाइयों की निंदा करने में सक्रिय भूमिका निभा सकती है। वहीं यह पूछे जाने पर कि क्या भारत ईरान और इस्राइल दोनों के साथ अपने मजबूत रणनीतिक संबंधों को देखते हुए इस क्षेत्र में मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है, तो ईरानी राजदूत ने कहा कि उनकी सरकार क्षेत्र में तनाव कम करने और शांति और स्थिरता स्थापित करने के लिए किसी भी कार्रवाई का स्वागत करेगी।
वहीं भारत को ईरान कितनी अहमियत देता है, इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि 13 अप्रैल को होर्मुज स्ट्रेट से भारत आ रहे एक इस्राइली अरबपति के जहाज MCS एरीज को ईरान की सेना ने कब्जे में ले लिया था, शिप पर 25 क्रू मेंबर मौजूद थे, जिनमें 17 भारतीय और दो पाकिस्तानी थे। विदेश मंत्री जयशंकर ने इस मामले को लेकर ईरान के विदेश मंत्री से उनकी सकुशल वापसी की बात की, जिसके बाद केरल के त्रिशूर की रहने वालीं महिला भारतीय डेक कैडेट एन टेसा जोसेफ को भारत भेज दिया गया। ईरान के राजदूत इराज इलाही बाकी भारत में अपने परिवारों के साथ संपर्क में हैं, मालवाहक जहाज पर सवार 16 भारतीय चालक दल के सदस्यों को हिरासत में नहीं लिया गया है और वे आसानी से देश छोड़ने के लिए आजाद हैं।
22 अप्रैल को पाकिस्तान जाएंगे ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी
वहीं इस्राइल से बढ़ते तनाव के बीच ईरान अब पाकिस्तान के साथ भी रिश्ते सुधारने की प्रक्रिया में है, जिनमें इस साल की शुरुआत में कड़वाहट पैदा हो गई थी। पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव के बीच ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी 22 अप्रैल को पाकिस्तान आने वाले हैं। वहीं ये यात्रा मौजूदा हालात को देखते हुए काफी अहम मानी जा रही है। क्योंकि इस्राइल पर मिसाइल हमले के बाद यह रईसी की पहली विदेश यात्रा है। इस यात्रा पर अमेरिका, इस्राइल की निगाहें लगी हुई हैं। इस साल की शुरुआत में ही जनवरी में पाकिस्तान और ईरान के बीच उस वक्त कड़वाहट पैदा हो गई थी, जब ईरान के सीमा पार हमलों के जवाब में पाकिस्तान ने ईरानी इलाके में आतंकवादियों को निशाना बनाने के लिए ड्रोन और रॉकेट का उपयोग किया था। ईरान ने पाकिस्तान के बलूचिस्तान में सुन्नी बलूच आतंकवादी समूह ‘जैश अल-अदल’ के दो ठिकानों को मिसाइल और ड्रोन से निशाना बनाया था। जिसके बाद पाकिस्तान ने 24 घंटों के भीतर ईरान पर सीमा पार हवाई हमले किए, जिसमें बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) के सदस्य मारे गए। तनाव इतना बढ़ गया था कि पाकिस्तान ने तेहरान से अपने राजदूत को वापस बुला लिया था और ईरान के राजदूत को वापस पाकिस्तान न लौटने को कहा था। लेकिन पर्दे के पीछे से चीन ने ईरान और पाकिस्तान के बीच सुलह करवा दी। और अब रईसी की पाकिस्तान यात्रा को चीन की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
मेरठ कॉलेज में अंतरराष्ट्रीय मामलों और डिफेंस स्टडीज के प्रोफेसर मोहम्मद रिजवान के मुताबिक रईसी की यात्रा का एजेंडा ईरान-पाकिस्तान गैस पाइपलाइन और मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) है। वह कहते हैं कि पाकिस्तान ने ग्वादर से पाकिस्तान-ईरान गैस पाइपलाइन के 80 किमी लंबे हिस्से का निर्माण तेजी से शुरू कर दिया है। लगभग एक दशक की देरी से चल रही इस परियोजना पर काम अमेरिका के स्पष्ट विरोध के साथ-साथ संभावित प्रतिबंधों की चेतावनियों के बीच शुरू हुआ है।
क्या परमाणु बम बनाना चाहता है ईरान?
प्रोफेसर रिजवान कहते हैं कि अमेरिका, ब्रिटेन इस्राइल के साथ खड़े हैं। जॉर्डन, अजरबैजान भी इस्राइल के साथ हैं। सऊदी अरब न्यूट्रल है। वहीं ईरान भी अब अपने पार्टनर ढूंढ रहा है। हालांकि उसके साथ रूस और चीन भी हैं, लेकिन सीधी लड़ाई में वे नहीं उतरेंगे। ईरान के पाकिस्तान जाने के पीछे रूस-चीन हो सकते है, क्योंकि इनके दोनों देशों से अच्छे संबंध हैं। वह कहते हैं कि यह भी संभव है कि ईरान पाकिस्तान समर्थित बलूचिस्तान में सुन्नी बलूच आतंकवादी समूह ‘जैश अल-अदल’ पर लगाम कसने के लिए कहे, ताकि वे ईरान पर आतंकी हमले न करें, और वह केवल इस्राइल पर ही ध्यान केंद्रित करे। इसके अलावा वह यह भी अंदेशा जताते हैं कि ईरान को अपनी सुरक्षा के लिए परमाणु बम चाहिए। इस क्षेत्र में मुस्लिम देशों में परमाणु बन केवल पाकिस्तान के ही पास है। पाकिस्तान को परमाणु बम देने वाले अब्दुल कादिर खान की कहानी सब जानते ही हैं। ईरान अंदरखाने पाकिस्तान से परमाणु बम की डील भी कर सकता है। क्योंकि ईरान ने हाल ही में संकेत दिया है कि वह परमाणु बनाने की ओर ध्यान दे सकता है। ईरान ने कहा है कि अगर इस्राइल ने उसकी परमाणु सुविधाओं पर हमला किया, तो वह भी परमाणु हथियार बना सकता है और इसका इस्तेमाल तेल अवीव पर कर सकता है।
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