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कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पर्यटकों का उमड़ा हुजूम 

विवेक मिश्रा/ रामेश्वर सोनी की स्पेशल रिपोर्ट

सोनभद्र (उत्तर प्रदेश):-  घोरावल विकास खण्ड के अन्तर्गत मुक्खा फ़ा ल पर लगभग 7हज़ार पर्यटकों की भीड़ रही l भारत त्योहारों का देश है। भारतीय संस्कृति की पहचान ही है विविधता में एकता। यहां पर सभी धर्मो के लोग अपने त्योहारों को धूमधाम से मनाते हैं। हिंदू धर्म में होली, दीपावली, दशहरा और अन्य पर्वों की तरह कार्तिक पूर्णिमा का लौकिक और पौराणिक दृष्टि से एक विशेष महत्व है।

हिंदू पंचांग के अनुसार साल का आठवां महीना कार्तिक का महीना होता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा कहलाती है। सृष्टि के आरंभ से ही इस तिथि को विशेष माना गया है। पुराणों में इस दिन स्नान,व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। धार्मिक मान्यता अनुसार इस दिन देवतागण पृथ्वीलोक पर आते हैं और भक्त उनके निमित्त शाम को दीपदान करते हैं।

इसलिए इसे देव दीपावली भी कहते हैं। इसी रात को लक्ष्मी पूजा भी की जाती है और चंद्रमा को अर्घ्य दिया जाता है। कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा नदी में स्नान करने से 1000 बार गंगा स्नान करने के समान फल मिलता है। शिव भक्तों के अनुसार इसी दिन भगवान भोलेनाथ ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था जिससे वह त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए।

इससे देवगण बहुत प्रसन्न हुए और भगवान विष्णु ने शिव जी को त्रिपुरारी नाम दिया जो शिव के अनेक नामों में से एक है। इसलिए इसे ‘त्रिपुरी पूर्णिमा’ भी कहते हैं।

इसी तरह सिख धर्म में कार्तिक पूर्णिमा के दिन को प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। क्योंकि इसी दिन सिख सम्प्रदाय के संस्थापक गुरु नानक देव का जन्म हुआ था। इस दिन सिख सम्प्रदाय के अनुयाई सुबह स्नान कर गुरुद्वारों में जाकर गुरुवाणी सुनते हैं और नानक जी के बताए मार्ग पर चलने की शपथ लेते हैं। इसे गुरु पर्व भी कहा जाता है।

इस दिन गंगा-स्नान,दीपदान,अन्य दानों आदि का विशेष महत्त्व है। इस दिन क्षीरसागर दान का अनंत महत्व है। क्षीरसागर का दान 24 अंगुल के बर्तन में दूध भरकर उसमें स्वर्ण या रजत की मछली छोड़कर किया जाता है। यह उत्सव दीवाली की भांति सायंकाल में दीप जलाकर मनाया जाता है।

इस दिन चन्द्र जब आकाश में उदित हो रहा हो उस समय शिवा, संभूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा इन छह कृतिकाओं का पूजन करने से शिव जी की प्रसन्नता प्राप्त होती है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए। इस दिन मांसाहारी भोजन करने से बचें और सात्विक भोजन ग्रहण करें। इस दिन शराब आदि का सेवन भी नहीं करना चाहिए। कार्तिक पूर्णिमा के विशेष अवसर पर किसी का अपमान, घृणा और अपशब्द आदि नहीं बोलने चाहिए। इससे भगवान विष्णु रूष्ट हो सकते हैं।

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