एकमुखी शिवलिंग , काशी (उत्तर प्रदेश):- काशी हिंदू विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध जीन विज्ञानी प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे को अपने ही गांव चौबेपुर के पास गंगा नदी के किनारे एक अत्यंत दुर्लभ एकमुखी शिवलिंग की प्रतिमा प्राप्त हुई। यह प्रतिमा बलुआ पत्थर से निर्मित है और इसकी कला शैली देखने योग्य है। ग्रामीण क्षेत्र में ऐसी खोज ने न केवल स्थानीय लोगों में उत्साह जगाया बल्कि इतिहास प्रेमियों और पुरातत्व विशेषज्ञों का ध्यान भी आकर्षित किया है।
अद्भुत शिल्प और भावपूर्ण अभिव्यक्ति
मूर्ति में भगवान शिव का मुख अत्यंत शांत मुद्रा में अंकित है। उनके सिर पर जटामुकुट सुसज्जित है तथा कानों में गोल कुंडल स्पष्ट दिखाई देते हैं। गले में माला और सूक्ष्म नक्काशी की सुंदरता इस मूर्ति को और भी आकर्षक बनाती है। इसका ऊपरी भाग पारंपरिक शिवलिंग के आकार में है जबकि सामने की दिशा में एक विशिष्ट मुख उकेरा गया है जो इसे अन्य सामान्य शिवलिंगों से अलग बनाता है।
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पुरातत्वविदों की विशेषज्ञ राय
इस मूर्ति का अध्ययन बीएचयू के प्रमुख पुरातत्वविद डा. सचिन तिवारी, डा. राकेश तिवारी और प्रोफेसर वसंत शिंदे ने किया। उनके अनुसार यह प्रतिमा नौंवी से दसवीं सदी ईस्वी की है और इसका संबंध गुर्जर प्रतिहार काल से है। मूर्ति के शिल्प में काशी और सारनाथ की कला परंपरा की झलक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है।
इतिहास और आस्था का संगम
यह खोज केवल एक पुरातात्विक घटना नहीं बल्कि आस्था और संस्कृति का जीवंत प्रतीक भी है। गंगा तट पर मिली यह प्राचीन शिव प्रतिमा हमें हमारे गौरवशाली अतीत की याद दिलाती है और भारतीय कला के समृद्ध इतिहास को पुनः उजागर करती है।






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