नई दिल्ली :- भारत में जनसांख्यिकी ढांचे में तेजी से बदलाव देखने को मिल रहा है जो देश के भविष्य की दिशा को प्रभावित करने वाला साबित हो सकता है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011 से 2026 के बीच देश में बच्चों और किशोरों यानी 0 से 19 वर्ष की आयु वर्ग की आबादी में लगभग नौ प्रतिशत की कमी आने का अनुमान है। यह बदलाव भारत के सामाजिक और आर्थिक संतुलन के लिए एक बड़ा संकेत माना जा रहा है।
रिपोर्ट बताती है कि शहरी क्षेत्रों में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता बढ़ने के कारण जन्मदर में निरंतर गिरावट आ रही है। ग्रामीण इलाकों में भी परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता बढ़ने से जनसंख्या वृद्धि की गति धीमी हो रही है। हालांकि इस कमी का असर रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य नीतियों पर भी पड़ेगा क्योंकि आने वाले वर्षों में कामकाजी उम्र की आबादी का अनुपात बढ़ेगा जबकि बच्चों की संख्या घटेगी।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह बदलाव भारत के लिए एक अवसर भी है। कम उम्र के आश्रितों की संख्या घटने से देश अधिक उत्पादक वर्ग पर ध्यान केंद्रित कर सकता है। सरकार को अब ऐसे कदम उठाने होंगे जिससे युवाओं को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, कौशल विकास और रोजगार के पर्याप्त अवसर मिल सकें।
वहीं दूसरी ओर वृद्ध जनसंख्या में तेजी से हो रही बढ़ोतरी भविष्य में स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों पर अतिरिक्त दबाव डाल सकती है। इसलिए नीति निर्माताओं के लिए यह समय दीर्घकालिक रणनीति बनाने का है ताकि भारत इस जनसांख्यिकीय परिवर्तन को अपनी आर्थिक शक्ति में बदल सके और सतत विकास की दिशा में मजबूत कदम बढ़ा सके।






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