नई दिल्ली :- आईपीएस अधिकारी वाई पूरन कुमार की आत्महत्या ने पूरे प्रदेश को हिला कर रख दिया है। एक जिम्मेदार अधिकारी की यह दुखद मौत केवल व्यक्तिगत त्रासदी नहीं बल्कि व्यवस्था के भीतर छिपे दबाव और अन्याय की परतें उजागर करती है। इस मामले में डीजीपी शत्रुजीत कपूर सहित 14 अधिकारियों पर एफआईआर दर्ज होना एक बड़ा घटनाक्रम माना जा रहा है।
पूरन कुमार का नाम उन अधिकारियों में शामिल था जो अपनी ईमानदारी और निष्ठा के लिए जाने जाते थे। परिवार ने आरोप लगाया कि उन्हें लगातार मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया और जातिगत टिप्पणी के जरिए अपमानित किया गया। यह मामला केवल आत्महत्या नहीं बल्कि उस व्यवस्था की विफलता का प्रतीक बन गया है जो अपने ही अधिकारियों को न्याय देने में नाकाम रहती है।
एफआईआर में आत्महत्या के लिए उकसाने और एससी एसटी एक्ट के तहत धाराएं लगाई गई हैं। मुख्यमंत्री के हस्तक्षेप और परिवार के लगातार संघर्ष के बाद पुलिस को कार्रवाई करने पर मजबूर होना पड़ा। यह घटना दिखाती है कि जब तक दबाव जनता की ओर से नहीं आता तब तक सिस्टम में बैठे लोग चुप्पी साधे रहते हैं।
पूरन कुमार की मौत एक चेतावनी है कि शक्ति के गलियारों में बैठा अन्याय अब ज्यादा दिनों तक छिप नहीं सकता। समाज और प्रशासन दोनों के लिए यह समय आत्ममंथन का है। यदि व्यवस्था ईमानदार अधिकारियों की रक्षा नहीं कर सके तो उसकी नींव ही खोखली साबित होगी। न्याय केवल मुकदमों में नहीं बल्कि व्यवस्था की संवेदनशीलता में दिखना चाहिए।






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