प्रयागराज (उत्तर प्रदेश):- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि एक हिंदू विवाह को अनुबंध की तरह भंग नहीं किया जा सकता। शास्त्र सम्मत विधि आधारित हिंदू विवाह को सीमित परिस्थितियों में ही भंग किया जा सकता है और वह भी संबंधित पक्षों द्वारा पेश साक्ष्यों के आधार पर। न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनाडी रमेश की पीठ ने विवाह को भंग किए जाने के खिलाफ एक महिला की अपील स्वीकार करते हुए कहा, “पारस्परिक सहमति के बल पर तलाक मंजूर करते समय भी निचली अदालत को तभी विवाह भंग करना चाहिए था जब आदेश पारित करने की तिथि को वह पारस्परिक सहमति बनी रही।” अदालत ने कहा, ”यदि अपीलकर्ता का दावा है कि उसने अपनी सहमति वापस ले ली है।
इस तथ्य को रिकॉर्ड में दर्ज कर लिया गया है तो निचली अदालत अपीलकर्ता को मूल सहमति पर कायम रहने के लिए बाध्य नहीं कर सकती।” पीठ ने कहा, ”ऐसा करना न्याय का उपहास होगा।” महिला ने 2011 में बुलंदशहर के अपर जिला जज द्वारा पारित निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील दाखिल की थी।
अपर जिला जज ने महिला के पति की ओर से दाखिल तलाक की अर्जी मंजूर कर ली थी। संबंधित पक्षों का विवाह दो फरवरी, 2006 में हुआ था। उस समय, पति भारतीय सेना में कार्यरत था। पति ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी 2007 में उसे छोड़ कर चली गई।