महाराष्ट्र:- महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से पहले मराठा कोटा की मांग और उन्हें ओबीसी के दायरे में लाने के विरोध का मुद्दा राजनीतिक तौर पर बहुत ही संवेदनशील होता जा रहा है। लग रहा है कि प्रदेश में मराठा बनाम ओबीसी के नाम पर ध्रुवीकरण की स्थिति तैयार की जा रही है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि जिस तरह के हालात बन रहे हैं, कहीं उससे प्रदेश का माहौल बिगड़ने का डर तो नहीं है?
ओबीसी नेता पंकजा मुंडे की जीत के जश्न में सामाजिक टकराव की आहट!
मसलन, भाजपा नेता पंकजा मुंडे ने महाराष्ट्र विधान परिषद का चुनाव जीता तो जालना जिले के अंतरवाली सराती गांव में ओबीसी समुदाय की ओर से सड़कों पर जोरदार जश्न मनाया गया। 2023 के मराठा कोटा की मांग को लेकर मनोज जारांगे पाटिल ने मराठवाड़ा के इसी गांव में अनशन शुरू किया था।
जारांगे की ओर से मराठा को ओबीसी कोटा में शामिल करने के लिए नई धमकी!
अब ओबीसी नेता की जीत पर यहां मनाए गए जश्न से लग रहा है कि समुदाय के लोग भी विधानसभा चुनावों से पहले खुद को गोलबंद करने में जुट गए हैं। दूसरी तरफ रविवार को जारांगे ने फिर धमकी दी है कि अगर योग्य मराठाओं को कुनबी श्रेणी के तहत ओबीसी आरक्षण का लाभ देने वालr अधिसूचना के मसौदे को तत्काल लागू नहीं किया तो 20 जुलाई से अनिश्चितकालीन उपवास शुरू कर देंगे।
‘ओबीसी अपनी पूरी ताकत दिखाने को मजबूर होगा’
दूसरी तरफ ओबीसी समुदाय की ओर से इस तरह की किसी भी कोशिश का पूरजोर विरोध किया जा रहा है। रविवार को ओबीसी नेता और महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व सदस्य लक्ष्मण हाके ने कहा है कि ‘ओबीसी अपनी पूरी ताकत दिखाने को मजबूर होगा।’
उनका कहना है, ‘महाराष्ट्र सरकार एक व्यक्ति (जारांगे) को शर्तें तय करने की अनुमति कैसे दे सकती है? वे भड़काऊ बयान देते हैं। वे अक्सर मुख्यमंत्री, मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ अभद्र भाषा का उपयोग करते हैं। सरकार महाराष्ट्र जैसे प्रगतिशील राज्य में यह कैसे होने दे सकती है? गृहमंत्री कहां हैं? कोई उनके (जारांगे) खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा है?’
हमारे कोटा को कुछ नहीं होना चाहिए-ओबीसी नेता
वहीं, महाराष्ट्र ओबीसी मंच के अध्यक्ष प्रकाश शेंगड़े ने कहा है, ‘ओबीसी ने बहुत ही ज्यादा संयम और सहनशीलता दिखाया है। लेकिन, किसी को इसे यूं ही हल्के में लेने का अधिकार नहीं है। ओबीसी कोटा से मराठाओं के आरक्षण लेने की किसी भी कोशिश का जोरदार विरोध होगा।’
उन्होंने यहां तक कहा है कि ‘अगर हमारी भावनाओं का कद्र नहीं किया गया तो हम भी सड़कों पर उतरेंगे। अगर अलग से मराठा कोटा दिया जाता है तो हम उसके खिलाफ नहीं हैं। हम ओबीसी श्रेणी में मराठा आरक्षण शामिल करने के लिए तैयार नहीं है। हमारे कोटा को कुछ नहीं होना चाहिए।’ दोनों ओर से जिस तरह का माहौल खड़ा किया जा रहा है, वह बहुत ही गंभीर मुद्दा है और राज्य सरकार के लिए इसे विधानसभा चुनावों तक संभालना बहुत ही ज्यादा चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है।
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