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भारत में आज के दिन की गई थी आपातकाल की घोषणा

नई दिल्ली:- 25 जून 1975 को 21 महीने के लिए इमरजेंसी लागू की गई थी और करीब 21 मार्च 1977 तक यह चली थी। यह समय पूर्व पीएम इंदिरा गांधी सरकार की मनमानियों का दौर था। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत केंद्र में इंदिरा गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार की सिफारिश पर आपातकाल की घोषणा कर दी थी। 25 जून की मध्य रात्रि को बिना किसी चेतावनी के आपातकाल की घोषणा कर दी गई और देश लोकतंत्र की मृत्यु के साथ जागा।

भारत में तीसरी बार राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया जा रहा है, इससे पहले दो बार क्रमशः 1962 और 1971 में चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान आपातकाल घोषित किया गया था।

1971 में इंदिरा गांधी ने आम चुनाव में भारी बहुमत से जीत हासिल की थी। उन्होंने बैंकों के राष्ट्रीयकरण और प्रिवी पर्स के उन्मूलन जैसी गरीब-हितैषी और वामपंथी नीतियों के ज़रिए लोगों का समर्थन हासिल किया था।

गांधीजी ने मंत्रिमंडल पर लगभग निरंकुश नियंत्रण रखा। सरकार पर उनका पूर्ण नियंत्रण था। 1971 के युद्ध ने देश की जीडीपी को कम कर दिया था। देश को कई सूखे और तेल संकट का भी सामना करना पड़ा। बेरोजगारी की दर भी बढ़ गई थी। 1974 में जॉर्ज फर्नांडीस के नेतृत्व में रेलवे कर्मचारियों की हड़ताल को सरकार द्वारा बुरी तरह दबा दिया गया था।

सरकार द्वारा न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप करने के भी प्रयास किये गये। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने घोषित किया कि चुनावी कदाचार के कारण गांधी का लोकसभा के लिए निर्वाचन शून्य था। जनता पार्टी के नेता जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने सरकार को हटाने का आह्वान किया। उन्होंने सम्पूर्ण क्रांति नामक कार्यक्रम का समर्थन किया। उन्होंने पुलिस और सेना के सदस्यों से असंवैधानिक आदेशों का पालन न करने को कहा।

जब सरकार के लिए हालात गंभीर हो रहे थे, गांधीजी ने आपातकाल की घोषणा कर दी और जेपी, मोरारजी देसाई, चरण सिंह, आचार्य कृपलानी आदि सहित सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं को तुरंत गिरफ्तार कर लिया। यहां तक कि आपातकाल का विरोध करने वाले कांग्रेस नेताओं को भी गिरफ्तार कर लिया गया।

आपातकाल के दौरान नागरिक स्वतंत्रता पर कठोर प्रतिबंध लगा दिए गए थे। प्रेस की स्वतंत्रता पर सख्ती से अंकुश लगा दिया गया था और प्रकाशित होने वाली किसी भी चीज़ को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से पास कराना पड़ता था।

इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने संविधान से इतर शक्तियों का इस्तेमाल किया। देश की जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए उन्होंने लोगों की जबरन नसबंदी करवाई। गैर-कांग्रेसी राज्य सरकारें बर्खास्त कर दी गईं। दिल्ली में कई झुग्गियां नष्ट कर दी गईं।भारत में मानवाधिकार उल्लंघन के कई मामले सामने आए। कर्फ्यू लगाया गया और पुलिस ने बिना किसी सुनवाई के लोगों को हिरासत में लिया।

सरकार ने संविधान में कई बार संशोधन किया (आपातकाल हटने के बाद, नई सरकार ने इन संशोधनों को रद्द कर दिया)। आपातकाल को अक्सर स्वतंत्र भारत का ‘सबसे काला समय’ कहा जाता है। जनवरी 1977 में गांधी जी ने देश की जनता का मूड न समझते हुए नए चुनावों की घोषणा कर दी। सभी राजनीतिक कैदियों को रिहा कर दिया गया।आधिकारिक तौर पर आपातकाल 21 मार्च 1977 को हटा लिया गया।

जनता ने गांधी और उनकी पार्टी को बहुत बुरी हार दी। इंदिरा गांधी और उनके बेटे दोनों ही चुनाव हार गए।जनता पार्टी ने चुनाव जीता और नई सरकार का नेतृत्व मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री के रूप में किया। देसाई भारत के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे।

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