लखनऊ (उत्तर प्रदेश):- आजमगढ़ उपचुनाव जातीय एवं धार्मिक ध्रुवीकरण का एक ऐसा उपचुनाव होगा जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एवं दो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एवं मायावती की अग्निपरीक्षा होगी। 1984 के बाद आजमगढ़ संसदीय सीट पर बदलते धार्मिक एवं जातीय समीकरण के अनुसार सपा, बसपा एवं भाजपा का ही कब्ज़ा रहा है। इसीलिए आजमगढ़ सपा बसपा और भाजपा तीनों दलों के लिए अभेद नहीं है। कोई भी दल उपचुनाव जीत सकता है। जातीय एवं धार्मिक समीकरण के अनुसार यादव, मुस्लिम एवं दलित तीनों का धर्म एवं जातियों का वर्चस्व है। जातीय और धार्मिक समीकरण को देखते हुए ही सपा और भाजपा ने यादव तथा बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी मैदान में उतारा है। कांग्रेस चुनाव नहीं लड़ रही है।
इस सीट पर सबसे अधिक ताकतवर स्थानीय नेता के रूप में रमाकांत यादव माने जाते थे। जो तीनों दलों सपा, बसपा और भाजपा से सांसद रह चुके हैं। रमाकांत 1996, 1999 सपा 2004 में बसपा और 2009 में भाजपा से सांसद चुने जा चुके हैं। वर्तमान में रमाकांत सपा से फूलपुर पवई क्षेत्र से विधायक हैं लेकिन यह विधानसभा क्षेत्र लालगंज संसदीय क्षेत्र में आता है। रमाकांत के बेटे अरुण कुमार यादव 2017 में भाजपा से विधायक थे लेकिन भाजपा ने 2022 में अरुण को टिकट नहीं दिया। रमाकांत सपा से प्रत्याशी बने और चुनाव जीते। आजमगढ़ एक ऐसा जिला है जो सपा का गढ़ माना जाता है। 2022 विधानसभा चुनाव में मोदी और योगी डबल इंजन की सरकार की पूरी ताकत लगने की बाद भी आजमगढ़ की दसों सीट पर सपा का कब्ज़ा है। इस संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत गोपालपुर, सगरी, मुबारकपुर, आजमपुर और मेहनगर (सु०) विधानसभा क्षेत्र आते हैं।
आजमगढ़ सीट पर 1989, 1998, 2004(सामान्य चुनाव) और 2008 उपचुनाव में बसपा के सांसद चुने गए हैं। 1996, 1999, 2014 और 2019 में सपा तथा 2009 में रमाकांत यादव भाजपा से सांसद चुने गए थे। 2014 में मुलायम सिंह यादव भाजपा के प्रत्याशी रहे रमाकांत यादव से 63000 मतों के अंतर से चुनाव जीते थे। 2014 मोदी की लहर थी और यह माना जाता है कि मुलायम सिंह जैसा कद्दावर नेता चुनाव मैदान में नहीं होता तो मोदी लहर में भाजपा के रमाकांत को हराना आसान नहीं था। इस चुनाव में मुलायम सिंह को 340306 और भाजपा प्रत्याशी के रूप में रमाकांत को 277102 तथा बसपा के शाह आलम को 266525 वोट मिले थे। सपा और भाजपा के कद्दावर नेताओं को बसपा के प्रत्याशी को कड़ी चुनौती दी। 2019 में आजमगढ़ से अखिलेश यादव चुनाव लड़े और इस चुनाव में सपा और बसपा का समझौता था। इसके बाद भी जिसमे यादव और मुस्लिम गठजोड़ तथा बसपा के मतों के समर्थन मिलने से अखिलेश यादव को 621578 वोट और उन्हें कुल मतों का 60.4 प्रतिशत मत मिला। इस सपा बसपा गठजोड़ के बाद भी भाजपा के दिनेश लाल यादव “निरहुआ” को 2019 में 35% मत और 361704 वोट मिले।
सबसे गंभीर और महत्वपूर्ण सवाल यही है सपा और बसपा गठबंधन में अखिलेश जैसे कद्दावर नेता के खिलाफ अगर भाजपा के “निरहुआ” को 35% वोट मिल थे तो अब बसपा ने अपना कद्दावर मुस्लिम नेता गुड्डू जमाली को मैदान में उतारा है ऐसे में अखिलेश यादव की जगह उनके चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव सपा की सीट बरक़रार रख पाएंगे ? जबकि उपचुनाव में केन्द्र एवं प्रदेश की भाजपा सरकार ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है और भाजपा के निरहुआ का नारा है कि जाति धर्म को बहुत चुना अब आजमगढ़ को चुनो। उसके कहने का मतलब है कि जाति एवं धर्म से हट कर भाजपा को जिताये। जिससे केंद्र और प्रदेश से मिलकर आजमगढ़ में विकास का कार्य कराया जा सके।
निरहुआ का यह नारा कितना सफल होगा, यह चुनाव परिणाम तय करेगा लेकिन जन मानस पर इसका प्रभाव दिखाई दे रहा है। योगी आदित्यनाथ के लिए आजमगढ़ में सपा बसपा के गढ़ और रमाकांत यादव के वर्चस्व को तोड़ना कड़ी चुनौती है वहीं पर मायावती के लिए मुस्लिम दलित समीकरण को जोड़ कर बसपा का दबदबा बनाये रखना आसान नहीं है। जनपद की 10 सीटों पर कब्ज़ा करने वाले अखिलेश यादव के लिए भी चचेरे भाई धर्मेन्द्र यादव को जीताना अग्निपरीक्षा जैसी है। उपचुनाव में सरकार का दबदबा है। डबल इंजन की सरकार है। योगी आदित्यनाथ जैसा ईमानदार एवं दबंग मुख्यमंत्री है। ऐसे में सपा के अखिलेश यादव और बसपा की मायावती दोनों के लिए अपने आधार एवं परम्परागत वोट यादव-मुस्लिम एवं मुस्लिम दलित समीकरण पर चुनाव जीतना बहुत आसान नहीं है। आजमगढ़ उपचुनाव 2024 के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योकि इस उपचुनाव से ही भाजपा के साथ ही माया और अखिलेश के भविष्य का आइना होगा।