पटना (बिहार):- बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर राज्य में राजनीतिक माहौल लगातार गर्म होता जा रहा है। सियासी पारा इतना बढ़ चुका है कि नेता दल बदलने में हिचकिचा नहीं रहे हैं। कहीं पुराने नेताओं को पार्टी में महत्व न मिलने की वजह से असंतोष साफ झलक रहा है तो कहीं नई महत्वाकांक्षाएं नेताओं को नए ठिकाने की ओर ले जा रही हैं। जनता भी इन हलचलों को ध्यान से देख रही है क्योंकि बिहार की राजनीति हमेशा से समीकरण और जातीय आधार पर मजबूती से खड़ी रहती है।
राज्य की सत्ता पर काबिज होने की चाह में महागठबंधन और एनडीए दोनों ही गुट हर संभव कोशिश कर रहे हैं। एक ओर एनडीए विकास और स्थिर सरकार का नारा दे रहा है वहीं महागठबंधन बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे को उठाकर जनता को अपने पक्ष में करने का प्रयास कर रहा है। टिकट बंटवारे की आहट भी नेताओं में बेचैनी बढ़ा रही है क्योंकि हर कोई चुनावी दंगल में अपनी दावेदारी मजबूत करना चाहता है।
गांव से लेकर शहर तक चौपालों और चाय की दुकानों पर चर्चाओं का दौर जारी है। लोग यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि किस पार्टी की हवा ज्यादा है और कौन सा नेता जनता के करीब पहुंच पा रहा है। बिहार की राजनीति में युवा मतदाताओं की भूमिका अहम मानी जा रही है और इस बार वे किसे समर्थन देंगे यह देखने लायक होगा।
सियासी उठापटक के बीच जनता अब ठोस वादों की तलाश में है। वह नेता चाहे किसी भी दल से हो अगर वह जनता की उम्मीदों पर खरा उतरता है तो उसकी राह आसान होगी। बिहार का मतदाता अब समझदार हो चुका है और केवल नारों से प्रभावित नहीं होता। यही वजह है कि हर पार्टी को जमीनी हकीकत समझकर आगे बढ़ना होगा।
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