नई दिल्ली :- भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाला क्रिकेट मुकाबला हमेशा से ही भावनाओं का केंद्र रहा है। जब भी दोनों देश मैदान पर आमने सामने होते हैं तो न सिर्फ खेल प्रेमियों बल्कि पूरे देश की नजरें इस मैच पर टिक जाती हैं। लेकिन इस बार माहौल सामान्य नहीं है। हाल ही में हुए पहलगाम हमले में 26 लोगों की जान चली गई जिससे देशभर में गुस्सा और आक्रोश फैला है। इसी बीच भारत पाकिस्तान मैच का आयोजन होने जा रहा है और इस पर राजनीति भी गरमा गई है।
ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार से सीधा सवाल पूछा है कि क्या इस मैच से होने वाला आर्थिक लाभ उन निर्दोष लोगों की जान से अधिक महत्वपूर्ण है जिन्होंने आतंकवाद का शिकार होकर अपनी जिंदगी गंवा दी। ओवैसी का कहना है कि सरकार को जनता की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए और ऐसे समय में क्रिकेट से अधिक संवेदनशीलता दिखानी चाहिए।
दूसरी ओर खेल प्रेमियों का एक वर्ग मानता है कि क्रिकेट को राजनीति से अलग रखा जाना चाहिए क्योंकि यह खेल दोनों देशों के बीच आपसी संवाद और जुड़ाव का माध्यम बन सकता है। उनका कहना है कि आतंकवाद की घटनाओं की जिम्मेदारी खेल पर नहीं डाली जा सकती और खिलाड़ियों की मेहनत को भी नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।
हालांकि विरोध करने वालों का तर्क है कि जब सीमा पर खून बह रहा हो और लोग अपनों को खो रहे हों तो जश्न और मनोरंजन का माहौल बनाना पीड़ित परिवारों के घावों पर नमक छिड़कने जैसा है। इसलिए यह बहस और भी गंभीर हो जाती है कि आखिर प्राथमिकता क्या होनी चाहिए।
इस पूरे विवाद ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि देश की सुरक्षा और नागरिकों का जीवन बड़ा है या खेल से जुड़ा आर्थिक लाभ और अंतरराष्ट्रीय दबाव। जवाब शायद आसान नहीं लेकिन हालात इस ओर इशारा कर रहे हैं कि क्रिकेट से जुड़ी हर बहस अब केवल खेल तक सीमित नहीं रह गई है।
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