नई दिल्ली- वैश्विक व्यापार पर असर डालने वाले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा लगाए गए टैरिफ का असर अब धीरे-धीरे कम होता दिख रहा है। खासकर भारत के लिए यह समय नए अवसर लेकर आया है। भारत सरकार के हालिया प्रयासों और नीतिगत सुधारों की वजह से इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में जबरदस्त उछाल की उम्मीद जताई जा रही है।सबसे अहम बात यह है कि भारत और चीन की कंपनियों के बीच ज्वाइंट वेंचर (Joint Venture) की संभावनाओं पर गंभीर बातचीत चल रही है, जिससे भारत को इस क्षेत्र में बड़ी तकनीकी बढ़त और विदेशी निवेश मिलने की पूरी संभावना है। सूत्रों के मुताबिक, कई बड़ी चीनी इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियां भारत में यूनिट स्थापित करने के लिए भारतीय कंपनियों के साथ मिलकर साझेदारी की योजना बना रही हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध के बाद चीन की कई कंपनियों को अमेरिका और यूरोपीय बाजारों में व्यापार करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है।
भारत एक विशाल उपभोक्ता बाजार होने के साथ-साथ अब मैन्युफैक्चरिंग का विश्वसनीय केंद्र भी बनता जा रहा है। यही वजह है कि चीनी कंपनियां भारत में प्रोडक्शन यूनिट स्थापित कर ‘मेक इन इंडिया’ के तहत अपना विस्तार करना चाहती हैं।भारत सरकार ने बीते वर्षों में PLI (प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव) स्कीम, ईज ऑफ डूइंग बिज़नेस, और विदेशी निवेश नीति को लेकर जो सुधार किए हैं, उनसे वैश्विक कंपनियों का भारत के प्रति विश्वास बढ़ा है। इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय ने भी संकेत दिए हैं कि यदि ऐसे ज्वाइंट वेंचर पारदर्शिता और सुरक्षा के मापदंडों पर खरे उतरते हैं, तो उन्हें आवश्यक मंजूरी दी जा सकती है। इससे भारत में मोबाइल, चिपसेट, लैपटॉप, स्मार्ट डिवाइसेज़ और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मैन्युफैक्चरिंग को नया आयाम मिल सकता है। डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में लगाए गए भारी-भरकम टैरिफ का असर आज भी चीन की निर्यात नीति पर पड़ रहा है। इन टैरिफ की वजह से चीनी कंपनियों को अमेरिका में व्यापार करने में आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा। ऐसे में अब ये कंपनियां भारत जैसे स्थिर और बढ़ते हुए बाजार में कदम रख रही हैं, जहां से वे न सिर्फ घरेलू जरूरतों को पूरा कर सकती हैं, बल्कि अफ्रीका, मध्य-एशिया और यूरोप जैसे बाजारों में भी निर्यात कर सकती हैं।
तकनीकी ट्रांसफर और हाई-एंड मैन्युफैक्चरिंग
स्थानीय रोजगार के अवसरों में वृद्धि
घरेलू बाजार में कम कीमत पर बेहतर उत्पाद
विदेशी मुद्रा का प्रवाह और निर्यात में वृद्धि
सरकारी अधिकारियों का मानना है कि अगर यह साझेदारी सफल होती है, तो भारत ‘ग्लोबल इलेक्ट्रॉनिक्स हब’ के रूप में अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है। दुनिया की बदलती आर्थिक परिस्थितियों ने भारत को एक नई भूमिका में ला खड़ा किया है। जहां पहले चीन इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्युफैक्चरिंग का एकाधिकार रखता था, अब वही चीन भारत में साझेदारी के लिए उत्सुक है। आने वाले समय में यह साझेदारी न सिर्फ भारत के तकनीकी विकास को रफ्तार देगी, बल्कि ट्रंप टैरिफ की हेकड़ी निकालते हुए भारत को एक वैश्विक टेक्नोलॉजी खिलाड़ी के रूप में स्थापित भी करेगी।
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