ढाका (बांग्लादेश):- बांग्लादेश की राजनीति में शेख हसीना का नाम एक ऐसे नेता के रूप में लिया जाता है जिन्होंने देश की दिशा और दशा दोनों को गहराई से प्रभावित किया। हसीना ने पंद्रह साल तक लगातार सत्ता संभाली और इस दौरान बांग्लादेश को आर्थिक रूप से एक नई पहचान दिलाई। उनके नेतृत्व में देश ने विकास की कई ऊंचाइयां छुईं और दक्षिण एशिया के देशों में एक मजबूत अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा।
लेकिन समय के साथ हसीना की छवि एक लोकतांत्रिक नेता से हटकर एक कठोर शासक की बन गई। विपक्ष पर दमन के आरोप लगे। मीडिया की आज़ादी पर सवाल उठे और चुनावों की पारदर्शिता पर उंगलियां उठीं। हसीना के शासन में जहां विकास योजनाएं फलफूल रही थीं वहीं असहमति की आवाज़ें धीरे धीरे दबा दी गईं।
लंबे शासन के बाद हालात ऐसे बने कि उन्हें देश छोड़ना पड़ा। आज शेख हसीना दिल्ली में रह रही हैं और यह दौर उनके राजनीतिक जीवन का सबसे कठिन समय माना जा रहा है। सत्ता से दूर होकर भी हसीना के भीतर एक नेता अब भी जीवित है जो शायद एक दिन फिर अपने देश लौटना चाहती है।
हसीना का यह सफर सत्ता सम्मान संघर्ष और सन्नाटे का अनोखा मिश्रण है। उन्होंने बांग्लादेश को बदला लेकिन खुद भी सत्ता की कठोरता से बदल गईं। इतिहास उन्हें एक दूरदर्शी नेता के रूप में याद रखेगा जिसने अपने देश को ऊंचाइयों पर पहुंचाया और फिर खुद निर्वासन की चुप्पी में खो गईं।






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