मुंबई (महाराष्ट्र):- बॉलीवुड के वरिष्ठ गीतकार और पटकथा लेखक जावेद अख्तर ने एक चौंकाने वाला बयान दिया है। अख्तर के अनुसार भारतीय सिनेमा में वुल्गैरिटी वाली फिल्मों को आसानी से क्लियरेंस मिल जाती है जबकि वास्तविकता दिखाने वाली फिल्में सेंसर के निशाने पर आती हैं। अख्तर ने यह बात अनंतत्रंग मानसिक स्वास्थ्य सांस्कृतिक उत्सव के उद्घाटन सत्र में कही।
अख्तर का आरोप
अख्तर ने आरोप लगाया कि भारतीय सेंसर बोर्ड वुल्गैरिटी के प्रति बहुत उदार है। उन्होंने कहा, “इस देश में वुल्गैरिटी को पास कर दिया जाता है लेकिन समाज को आईना दिखाने वाली फिल्में सेंसर के निशाने पर आती हैं।” अख्तर ने कहा कि फिल्में समाज का एक आईना होती हैं और उन्हें समाज की वास्तविकता को दिखाना चाहिए।
फिल्मों में वुल्गैरिटी का बढ़ता प्रचलन
अख्तर ने फिल्मों में वुल्गैरिटी के बढ़ते प्रचलन पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि वह खुद कभी भी ऐसी फिल्मों का हिस्सा नहीं बनते हैं जिनमें वुल्गैरिटी होती है। अख्तर ने कहा, “फिल्में समाज को आईना दिखाती हैं, लेकिन आईना देखने से समस्या का समाधान नहीं होता है।”
हाइपर-मैस्कुलिनिटी का प्रभाव
अख्तर ने हाइपर-मैस्कुलिनिटी के प्रभाव पर भी बात की। उन्होंने कहा कि फिल्मों में हाइपर-मैस्कुलिनिटी का प्रदर्शन समाज में पुरुषों की मानसिकता को प्रभावित करता है। अख्तर ने कहा, “ऐसी फिल्में बनाने वाले लोगों की मानसिकता में कुछ गड़बड़ है। अगर पुरुषों की मानसिकता ठीक हो जाए तो ऐसी फिल्में नहीं बनेंगी।”
समाज की जिम्मेदारी
अख्तर ने समाज को भी जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि समाज की खराब मानसिकता ही ऐसी फिल्मों को सफल बनाती है। अख्तर ने कहा, “एक बुरा दर्शक ही खराब फिल्म को सफल बनाता है। अगर समाज की मानसिकता ठीक हो जाए तो ऐसी फिल्में नहीं बनेंगी।”






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