नई दिल्ली: हाल के वर्षों में भारत में युवा महिलाओं में कम अंडाशय क्षमता की समस्या तेजी से बढ़ रही है। कई महिलाएं जो अपने 20 और 30 के दशक में हैं अब इस समस्या का सामना कर रही हैं और उन्हें गर्भधारण करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।
क्या है कम अंडाशय क्षमता?
अंडाशय क्षमता से तात्पर्य है महिला के शरीर में मौजूद अंडों की संख्या और गुणवत्ता से। जब महिला की उम्र बढ़ती है तो उसके अंडाशय में मौजूद अंडों की संख्या और गुणवत्ता दोनों ही कम होने लगती हैं। लेकिन कुछ महिलाओं में यह कमी कम उम्र में ही देखी जा रही है जिसे कम अंडाशय क्षमता कहा जाता है।
कारण
कम अंडाशय क्षमता के कई कारण हो सकते हैं जिनमें से कुछ प्रमुख कारण हैं:
– आयु: आयु बढ़ने के साथ अंडाशय क्षमता कम होना स्वाभाविक है लेकिन अब युवा महिलाएं भी इसकी चपेट में आ रही हैं।
– जीवनशैली: धूम्रपान, शराब का सेवन, तनाव और खराब आहार जैसी जीवनशैली की आदतें अंडाशय क्षमता को कम कर सकती हैं।
– पर्यावरणीय कारक: प्रदूषण और कीटनाशकों के संपर्क में आने से भी अंडाशय क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
– जेनेटिक्स: कुछ महिलाओं में जेनेटिक कारणों से भी कम अंडाशय क्षमता हो सकती है।
लक्षण
कम अंडाशय क्षमता के लक्षणों में शामिल हैं:
– अनियमित मासिक धर्म: मासिक धर्म का अनियमित होना या मासिक धर्म न आना।
– गर्भधारण में कठिनाई: गर्भधारण करने में कठिनाई या बार-बार गर्भपात होना।
– मूड स्विंग्स: मूड स्विंग्स या अवसाद जैसी समस्याएं।
निदान और उपचार
कम अंडाशय क्षमता का निदान करने के लिए कई परीक्षण किए जा सकते है जिनमें से कुछ प्रमुख परीक्षण हैं:
– एएमएच टेस्ट: यह परीक्षण अंडाशय में मौजूद अंडों की संख्या का अनुमान लगाने में मदद करता है।
– अल्ट्रासाउंड: यह परीक्षण अंडाशय में मौजूद फॉलिकल्स की संख्या का अनुमान लगाने में मदद करता है।






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