पटना (बिहार): बिहार विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) द्वारा उम्मीदवारों की घोषणा में एक स्पष्ट रणनीति नज़र आ रही है: पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग को महत्व देना और महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व देना। दोनों दलों की जारी सूचियों में सामाजिक समीकरणों को साधने की यह कोशिश महत्वपूर्ण चुनावी संदेश दे रही है।
जेडीयू ने अपनी 101 सीटों की सूची में आधे से अधिक टिकट अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अति पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) के उम्मीदवारों को दिए हैं। पार्टी ने कुल 59 उम्मीदवारों को इन वर्गों से मैदान में उतारा जिनमें 37 ओबीसी और 22 ईबीसी से हैं। यह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ‘लव-कुश’ (कुर्मी-कुशवाहा) और अति पिछड़ा वर्ग के मजबूत वोट बैंक पर फोकस को दर्शाता है। यह कदम हाल ही में हुए जाति सर्वेक्षण के आंकड़ों के संदर्भ में भी देखा जा रहा है जहां इन वर्गों की बड़ी आबादी सामने आई है।
वहीं, बीजेपी ने भी अपने उम्मीदवारों की पहली सूची में 50 प्रतिशत से अधिक टिकट दलितों, पिछड़ों, अति पिछड़ों और महिला उम्मीदवारों को देने का दावा किया है। बीजेपी की पहली सूची में 20 उम्मीदवार ओबीसी से और 11 ईबीसी से शामिल थे। पारंपरिक रूप से सवर्णों की पार्टी मानी जाने वाली बीजेपी का यह कदम अपने आधार को व्यापक बनाने और गैर-यादव ओबीसी तथा ईबीसी मतदाताओं को आकर्षित करने की उसकी रणनीति का हिस्सा है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि दोनों दलों ने महिला उम्मीदवारों को टिकट देने में पिछली बार की तुलना में अधिक रुचि दिखाई है जिससे यह एक बड़ी खबर बन गई है। दोनों पार्टियों द्वारा कुल 202 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद, महिलाओं को दिए गए कुल टिकटों का प्रतिशत 13% के आसपास पहुंच गया है। जेडीयू ने अपने कोटे की 101 सीटों में से 13 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है, जो लगभग 13% है। बीजेपी ने भी अपनी विभिन्न सूचियों में महिलाओं को टिकट दिए हैं जो पार्टी की ‘नारी शक्ति’ को बढ़ावा देने की मुहिम का हिस्सा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह महिला मतदाताओं को साधने की एक सोची-समझी रणनीति है जिनकी चुनाव में भागीदारी लगातार बढ़ रही है।
बीजेपी और जेडीयू का यह टिकट वितरण न केवल सामाजिक न्याय की उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है बल्कि बिहार की जाति-केंद्रित राजनीति में सत्ता के नए समीकरणों को साधने का एक बड़ा प्रयास भी है। पिछड़ा और अति पिछड़ा वर्ग के वर्चस्व के साथ-साथ महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाना यह बताता है कि एनडीए गठबंधन राज्य की चुनावी बिसात पर एक संतुलित और समावेशी राजनीतिक संदेश देना चाहता है।






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