पटना (बिहार):-बिहार विधानसभा में मुस्लिम चेहरों की हिस्सेदारी एक बार फिर से चर्चा का विषय बन गई है। हाल के वर्षों में हुए विधानसभा चुनावों में मुस्लिम विधायकों की संख्या में कमी आई है जो इस समुदाय के लिए एक चिंताजनक विषय है। बिहार की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग 17.7% है, लेकिन विधानसभा में उनकी प्रतिनिधित्व इस अनुपात में नहीं है।
आंकड़े क्या कहते हैं?
बिहार विधानसभा के पिछले आठ चुनावों के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि मुस्लिम विधायकों की संख्या में लगातार उतार-चढ़ाव आया है। 1990 में मुस्लिम विधायकों की संख्या 18 थी, जो कुल विधायकों की संख्या का 5.55% था। इसके बाद 1995 में यह संख्या बढ़कर 23 हो गई, जो 7.09% थी। 2005 के फरवरी में हुए चुनावों में मुस्लिम विधायकों की संख्या 24 हो गई, जो 9.87% थी। लेकिन 2020 के विधानसभा चुनावों में यह संख्या घटकर 19 हो गई, जो कुल विधायकों की संख्या का 7.81% है।
कारण क्या हैं?
बिहार विधानसभा में मुस्लिम चेहरों की घटती हिस्सेदारी के कई कारण हो सकते हैं। एक कारण यह हो सकता है कि मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो रहा जिससे उनकी एकजुटता कम हो रही है। दूसरा कारण यह हो सकता है कि राजनीतिक दल मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट देने में कम रुचि दिखा रहे हैं। इसके अलाव मुस्लिम समुदाय की आंतरिक समस्याएं और उनकी राजनीतिक भागीदारी की कमी भी एक कारण हो सकती है।
राजनीतिक दलों की भूमिका
राजनीतिक दलों की भूमिका भी इस मामले में महत्वपूर्ण है। राजद (RJD) और कांग्रेस जैसे दल मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए प्रयासरत हैं लेकिन उनकी रणनीति और उम्मीदवार चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाए जा रहे हैं। वहीं, एआईएमआईएम (AIMIM) जैसी पार्टियां भी मुस्लिम वोटों के लिए दावेदारी कर रही हैं जिससे मुस्लिम वोटों का बंटवारा हो रहा है।






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