नई दिल्ली: भारत में बिजली सुधार एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिस पर सरकार और विभिन्न हितधारकों के बीच चर्चा चल रही है। बिजली सुधार के लिए सरकार ने कई कदम उठाए हैं लेकिन अभी भी कई चुनौतियां मौजूद हैं।
बिजली सुधार के लिए सरकार के प्रयास
सरकार ने बिजली सुधार के लिए कई कदम उठाए हैं जिनमें से एक है बिजली अधिनियम 2003 में संशोधन करना। इस संशोधन के माध्यम से सरकार बिजली वितरण में सुधार करना चाहती है जिससे बिजली की कटौती कम हो और उपभोक्ताओं को बेहतर सेवा मिल सके। इस संशोधन के कुछ प्रावधानों पर विवाद है जिसे सरकार ने हाल ही में वापस ले लिया है।
विवादित प्रावधान
सरकार ने बिजली अधिनियम 2003 में संशोधन के लिए जो प्रावधान प्रस्तावित किए थे, उनमें से चार प्रमुख प्रावधानों पर विवाद था। इनमें बिजली अनुबंध प्रवर्तन प्राधिकरण की स्थापना, सब्सिडी के प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण, केंद्रीय और राज्य टैरिफ नियामकों के लिए एकल चयन समिति और वितरण उप-लाइसेंस की अनुमति शामिल थी। इन प्रावधानों का विरोध करने वालों का तर्क था कि ये प्रावधान संघवाद के सिद्धांतों के खिलाफ हैं और राज्यों की शक्तियों का अतिक्रमण करते हैं।
सरकार का रुख
सरकार ने इन प्रावधानों को वापस लेने के पीछे “हितधारकों से प्राप्त फीडबैक” का हवाला दिया है। सरकार का कहना है कि वह बिजली सुधार के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन वह ऐसा करने के लिए सभी हितधारकों के साथ मिलकर काम करना चाहती है।
चुनौतियां
बिजली सुधार के रास्ते में अभी भी कई चुनौतियां हैं। बिजली वितरण कंपनियों की वित्तीय स्थिति खराब है और वे उपभोक्ताओं को समय पर बिल नहीं दे पा रही हैं। इसके अलावा बिजली चोरी एक बड़ी समस्या है जिससे बिजली वितरण कंपनियों को हर साल भारी नुकसान होता है।






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