नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने देश के अधिकांश हिस्सों में अपनी पकड़ मजबूत की है लेकिन बिहार अभी भी उसके लिए एक बड़ा चुनौती बना हुआ है। भाजपा की इस हिंद-हृदय प्रदेश में सफलता की कहानी में बिहार एक अपवाद है जहां पार्टी अपने दम पर बहुमत हासिल नहीं कर पाई है।
क्या है इसके पीछे की वजह?
बिहार की राजनीति में जातिगत समीकरण एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यहां की राजनीति में यादव मुस्लिम और अन्य पिछड़े वर्गों की बड़ी आबादी है जो भाजपा के लिए एक चुनौती है। भाजपा ने नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) के साथ गठबंधन करके इस चुनौती का सामना करने की कोशिश की है।
नीतीश कुमार की भूमिका
नीतीश कुमार की जनता दल (यूनाइटेड) बिहार में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति है। उनकी पार्टी ने भाजपा के साथ मिलकर कई बार सरकार बनाई है। हालांकि नीतीश कुमार की राजनीतिक चालें अक्सर भाजपा के लिए मुश्किलें पैदा करती हैं। उन्होंने हाल ही में भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई है लेकिन उनकी पार्टी के कुछ नेता भाजपा के साथ जाने को लेकर असंतुष्ट हैं।
भाजपा की रणनीति
भाजपा ने बिहार में अपनी रणनीति में बदलाव किया है। पार्टी ने अब जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए अपने उम्मीदवारों का चयन करने की कोशिश की है। इसके अलावा पार्टी ने अपने केंद्रीय नेताओं की सक्रियता भी बढ़ाई है जो बिहार में पार्टी की स्थिति को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं।
क्या है भविष्य की संभावनाएं?
बिहार में आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ मिलकर कितनी प्रभावी ढंग से काम कर पाती है। इसके अलावा पार्टी को अपने कोर वोट बैंक को बनाए रखने और नए वोटरों को आकर्षित करने की भी आवश्यकता होगी।






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