पटना (बिहार):- सीमांचल की 24 सीटों पर मुकाबला दिलचस्प है। एआईएमआईएम के बाद जन सुराज ने महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। जन सुराज ने अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है, जिससे महागठबंधन की चिंता बढ़ गई है। MY समीकरण बिगड़ने और वोटों के विभाजन से महागठबंधन को नुकसान हो सकता है।
बिहार की सीमांचल की राजनीति इन दिनों नए सियासी समीकरणों की गवाह बन रही है। प्रशांत किशोर की जन सुराज यात्रा अब केवल जनसंपर्क अभियान नहीं रह गई बल्कि यह क्षेत्र की राजनीतिक दिशा को प्रभावित करने वाली ताकत बनती जा रही है। सीमांचल की चौबीस विधानसभा सीटों पर जन सुराज के बढ़ते जनाधार ने महागठबंधन और एनडीए दोनों की रणनीतियों में हलचल पैदा कर दी है।
किशोर का फोकस इस बार केवल प्रचार पर नहीं बल्कि गांव स्तर पर संगठन खड़ा करने पर है। उन्होंने स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता दी है जिनमें शिक्षा स्वास्थ्य सड़क और बेरोजगारी जैसी समस्याएं शामिल हैं। लोगों में यह धारणा बन रही है कि पारंपरिक दलों ने विकास के नाम पर केवल वादे किए हैं जबकि जन सुराज सीधे जनता के बीच जाकर समाधान की बात करता है।
महागठबंधन के नेताओं को डर है कि जन सुराज सीमांचल में उनके वोट बैंक में सेंध लगा सकता है। खासकर मुस्लिम और पिछड़ा वर्ग की सीटों पर यह असर साफ दिख सकता है। एनडीए भी इस क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए लगातार रणनीति बदल रहा है। जन सुराज की लोकप्रियता के कारण स्थानीय समीकरण तेजी से बदल रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि जन सुराज सीमांचल में अपेक्षित प्रदर्शन कर लेता है तो बिहार की राजनीति का पूरा संतुलन बदल सकता है। आने वाले चुनाव में यह तय होगा कि जनता पुराने दलों पर भरोसा रखेगी या प्रशांत किशोर के नए जन आंदोलन को मौका देगी। सीमांचल अब बिहार की राजनीति का केंद्र बन गया है जहां हर कदम सियासी महत्व रखता है।






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