मुंबई (महाराष्ट्र):-गूगल ने अपने एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम के लिए एक नया डेवलपर वेरिफिकेशन प्रोग्राम शुरू करने की घोषणा की है जो ऐप इंस्टॉलेशन के तरीके को बदल देगा। इस नए प्रोग्राम के तहत डेवलपर्स को अपने ऐप्स को साइडलोड करने या थर्ड-पार्टी ऐप स्टोर्स के माध्यम से वितरित करने से पहले अपनी पहचान सत्यापित करनी होगी।
क्या है डेवलपर वेरिफिकेशन प्रोग्राम?
डेवलपर वेरिफिकेशन प्रोग्राम गूगल का एक नया पहल है जिसका उद्देश्य ऐप डेवलपर्स की पहचान सत्यापित करना है। इससे उपयोगकर्ताओं को सुरक्षित और भरोसेमंद ऐप्स मिलेंगे। इस प्रोग्राम के तहत डेवलपर्स को अपनी पहचान सत्यापित करने के लिए आवश्यक दस्तावेज जमा करने होंगे।
क्यों जरूरी है डेवलपर वेरिफिकेशन?
गूगल के अनुसार, थर्ड-पार्टी ऐप स्टोर्स और साइडलोडिंग के माध्यम से वितरित किए जाने वाले ऐप्स में मैलवेयर और अन्य सुरक्षा खतरों की संभावना अधिक होती है। डेवलपर वेरिफिकेशन प्रोग्राम का उद्देश्य इन खतरों को कम करना और उपयोगकर्ताओं को सुरक्षित रखना है।
क्या होगा बदलाव?
इस नए प्रोग्राम के तहत, ऐप डेवलपर्स को अपनी पहचान सत्यापित करनी होगी। इससे उपयोगकर्ताओं को पता चलेगा कि ऐप किसने बनाया है और वह भरोसेमंद है या नहीं। गूगल ने कहा है कि साइडलोडिंग अभी भी उपलब्ध होगी लेकिन इसके लिए डेवलपर वेरिफिकेशन आवश्यक होगा।
कौन होंगे प्रभावित?
इस बदलाव से मुख्य रूप से थर्ड-पार्टी ऐप स्टोर्स और साइडलोडिंग के माध्यम से ऐप्स वितरित करने वाले डेवलपर्स प्रभावित होंगे। गूगल ने कहा है कि वह डेवलपर्स को वेरिफिकेशन प्रक्रिया को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय देगा।
क्या है गूगल का दावा?
गूगल का दावा है कि यह बदलाव उपयोगकर्ताओं को सुरक्षित रखेगा और ऐप्स की विश्वसनीयता बढ़ाएगा। हालांकि कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इससे ऐप डेवलपर्स के लिए समस्याएं पैदा हो सकती हैं और ऐप्स की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है।
क्या है समयसीमा?
गूगल ने कहा है कि यह बदलाव सितंबर 2026 से लागू होगा। डेवलपर्स को वेरिफिकेशन प्रक्रिया को पूरा करने के लिए पर्याप्त समय दिया जाएगा।






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