नई दिल्ली:- भारत में उच्च शिक्षा संस्थानों की रैंकिंग करने वाले नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) ने एक बड़ा कदम उठाया है। अब से रिट्रक्टेड पेपर और खराब गुणवत्ता वाले शोध पर नेगेटिव मार्क लगाए जाएंगे। यह फैसला शैक्षणिक संस्थानों में शोध की गुणवत्ता और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए लिया गया है।
एनआईआरएफ के अध्यक्ष अनिल साहस्रबुद्धे ने बताया कि रिट्रक्टेड पेपर और साइटेशन ऑफ टेंटेड पेपर पर नेगेटिव मार्किंग की जाएगी। यह पहली बार है जब एनआईआरएफ की रैंकिंग में नेगेटिव वेटेज शामिल किया जा रहा है। साहस्रबुद्धे ने कहा, “अब तक कई संस्थानों में दो से तीन साल में बड़ी संख्या में रिसर्च पेपर रिट्रक्ट हुए हैं। इससे संस्थानों की विश्वसनीयता पर सवाल उठते हैं।”
क्या है एनआईआरएफ?
एनआईआरएफ भारत सरकार द्वारा स्थापित एक फ्रेमवर्क है जो देश के उच्च शिक्षा संस्थानों की रैंकिंग करता है। यह रैंकिंग पांच प्रमुख मापदंडों पर आधारित होती है:
– शिक्षण और अधिगम: इसमें छात्रों की संख्या और फैकल्टी-छात्र अनुपात जैसे मापदंड शामिल हैं।
– शोध और पेशेवर अभ्यास: इसमें प्रकाशन, बौद्धिक संपदा अधिकार और पेटेंट जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
– स्नातक परिणाम: इसमें विश्वविद्यालय परीक्षा और पीएचडी प्रदान करने जैसे मापदंड शामिल हैं।
– आउटरीच और समावेशी: इसमें क्षेत्रीय, सामाजिक और आर्थिक विविधता जैसे मापदंड शामिल हैं।
– धारणा: इसमें शैक्षणिक साथियों और नियोक्ताओं की धारणा शामिल है।
नेगेटिव मार्किंग का उद्देश्य
एनआईआरएफ की नेगेटिव मार्किंग नीति का उद्देश्य शोध में अनियमितताओं और डेटा की गलतबयानी को रोकना है। इससे संस्थानों को अपने शोध की गुणवत्ता में सुधार करने और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा।
क्या होगा प्रभाव?
एनआईआरएफ की नेगेटिव मार्किंग नीति से संस्थानों पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह देखने वाली बात होगी। लेकिन यह तय है कि इससे शोध की गुणवत्ता में सुधार होगा और संस्थानों को अपने शोध में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकेगा ।






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